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________________ गाहा अह विम्हिएण रन्नो विचिंतियं किं हविज्ज सा देवी। अहवा इह अडवीए देवीए संभवो कत्थ? ।।१६३।। संस्कृत छाया अथ विस्मितेन राज्ञा विचिन्तितं किं भवेत् सा देवी । अथवा इहाटव्यां देव्याः सम्भवः कुतः ? ।। १६३ ।। गुजराती अनुवाद १६३. हवे विस्मयपामेल राजार विचार्यु शुं ते महाराणी हशे, पण आ अरण्यमां देवीनी संभावना क्याथी? हिन्दी अनुवाद आश्चर्यचकित राजा ने विचार किया, क्या वह महारानी हैं किन्तु इस जंगल में उस देवी की सम्भावना कैसे हो सकती है? गाहा अहवा कम्म-वसाणं सत्ताणं नवरि एत्थ संसारे । भवियव्वया-वसेणं नत्थि तयं जं न संभवइ ।।१६४।। संस्कृत छाया अथवा कर्मवशानां सत्त्वानां नवरमत्र संसारे । भवितव्यतावशेन नास्ति तद् यन्न सम्भवति ।। १६४ ।। गुजराती अनुवाद १६४. अथवा तो खरेखर आ संसारमा कर्मवश प्राणीओने भवितव्यताना योगथी एवं कंइ ज नथी के जे न थाय. हिन्दी अनुवाद अथवा तो इस संसार में कर्मवश प्राणिओं के भाग्य से ऐसा कुछ भी नहीं है जो न हो सकता हो। गाहा__ जइ सा हविज्ज देवी ता सुंदरमेव, कावि अह अन्ना । तहवि हु उत्तारिज्जउ करुणा-मूलो जओ धम्मो ।।१६५।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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