SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया काऽसि त्वमिह सुन्दरि ! इति पृष्टा यावन्न ददाति प्रतिवचनम् । तावच्च जलमध्यगता विलासिनी कण्ठगतप्राणा ।। १६० ।। सम्प्राप्ता तेन ततो गृहीत्वा तां क्रमेण निःसृतः । कथयति राजन् ! अत्राऽन्याऽपि खल्वास्ते युवती ।। १६१ ।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद १६० - १६१. हे सुन्दरि ! तुं कोण छे? र प्रमाणे पूछायेली कई जवाब थी आपती त्यां तो ते स्त्री कंठे आवेला प्राण समान पाणीनी अंदर पहोंची गई. त्यारबाद तेने प्राप्त करी अनुक्रमे बहार आव्यो अने कहे छे राजन्! अहीं बीजी पण महिला छे? हिन्दी अनुवाद हे सुन्दरी! तुम कौन हो ? ऐसा पूछने पर भी कोई जवाब न देने वाली वह स्त्री जैसे उसके प्राण कंठ में आकर रुक गए हों, पानी में अन्दर पहुँच गयी। फिर उसे लेकर वे बाहर आये और राजा से बोले, हे राजन् ! यहाँ एक दूसरी महिला भी है। गाहा आभट्ठावि न भासइ भएण कंपंत-तणु-लया वरई । एयं निसम्म रन्नो फुरियं अह दाहिणं नयणं ।। १६२ ।। संस्कृत छाया आभाषितापि न भाषते भयेन कम्पमानतनुलता वराकी । एतद् निशम्य राज्ञः स्फुरितमथ दक्षिणं नयनम् ।। १६२ ।। गुजराती अनुवाद १६२. भयथी कंपायमान तनु लता समान ( पतली लता समान्) ते बिचारी बोलाववा छतां बोलती नथी. आ वात सांभलीने राजानी जमणी आँख फरकवा लागी. हिन्दी अनुवाद भय से कांपती, पतली लता के समान वह बेचारी बुलाने से भी नहीं बोल रही थी। यह सुनकर राजा की दाहिनी आँख फड़कने लगी।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy