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संस्कृत छाया
यदि सा भवेत् देवी तर्हि सुन्दरमेव, काप्यथान्या ।
तथापि खलु उत्तार्यतां करुणामूलो यतो धर्मः ।। १६५ ।। गुजराती अनुवाद
१६५. जो ते देवी होय तो तो सरस ज अथवा जो बीजी कोई पण महिला होय तो पण खरोखर तेने बहार काढ़वी जोईस कारण के करुणामय ज धर्म छ। हिन्दी अनुवाद
यदि वह वही देवी है तब तो ठीक है किन्तु यदि दूसरी कोई महिला भी हो तो निश्चित ही उसे बाहर निकालना चाहिए क्योंकि करुणा ही धर्म है। गाहा
इय चिंतिऊण रना भणिओ पुरिसो तयंपि कड्डेहि ।
अह सो रज्जूइ पुणो पुरिसो कूवम्मि ओइन्नो ।।१६६।। संस्कृत छाया
इति चिन्तयित्वा राज्ञा भणितः पुरुषः तामपि कर्ष ।
अथ स रज्ज्वा पुनः पुरुषः कूपेऽवतीर्णः ।। १६६ ।। गुजराती अनुवाद
१६६. आ प्रमाणे विचारीने राजास पुरुषने कह्यु- 'ते स्त्रीने पण बहार काढ़ त्यारबाद दोरडा साथे ते पुरुष फरी कुवामां उतयो. हिन्दी अनुवाद
ऐसा विचार कर राजा ने उस पुरुष से कहा, 'उस स्त्री को भी बाहर निकालो। उसके बाद रस्सी के सहारे वह व्यक्ति दुबारा कुएं में उतरा। गाहा
भणिया य सुयण! अहयं रन्नो सिरि-अमरकेउ-नामस्स ।
वयणणं तुहुत्तारण-कज्जेणं पुणरवि पविट्ठो ।।१६७।। संस्कृत छाया
भणिता च सुतनो ! अहं राज्ञः श्रीअमरकेतुनाम्नः । वचनेन तवोत्तारणकार्येण पुनरपि प्रविष्टः ।। १६७ ।।