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________________ गाहा अह निययाभरणेणं सुवन-लक्खेण पूइओ सुमई। नीहरिओ रायावि हु मणयं जाओ विगय-सोगो ।।१५०।। संस्कृत छाया अथ निजकाऽऽभरणेन सुवर्णलक्षण पूजितः सुमतिः । निःसृतो राजाऽपि खलु मनाक् जातो विगतशोकः ।। १५० ।। गुजराती अनुवाद १५०. हवे पोताना आधरण तथा लक्षसुवर्ण वड़े सन्मान पामेल नैमित्तिक सुमति विसर्जन पाम्यो, राजा पण थोड़ो शोक रहित थयो. हिन्दी अनुवाद उसके बाद आभूषण और एक लाख सुवर्ण मुद्राओं से सम्मानित सुमति ज्योतिषी अपने घर चला गया और राजा भी शोकरहित हो गए। गाहा अह अन्नया य राया सुत्तो रयणीइ पेच्छए सुमिणं । उत्तर-दिसा-मुहेणं वयमाणेणं मए कूवे ।।१५१।। पडिया अद्ध-मिलाणा धवला कुसुमाण मालिया दिट्ठा । गहिया सहसा जाया पच्चग्गा सुरहि-गंधडा ।।१५२।। संस्कृत छाया अथाऽन्यदा च राजा सुप्तो रजन्यां प्रेक्षते स्वप्नम् । उत्तरदिङ्गमुखेन व्रजता मया कूपे ।। १५१ ।। पतिताऽर्धम्लाना धवला कुसुमानां मालिका छटा । गृहीता सहसा जाता प्रत्यया सुरभिगन्याया ।।१५२।।युग्मम् । गुजराती अनुवाद १५१-१५२. (राजाने स्वप्न दर्शन) हवे कोई वखते रात्रिमा सूतेलो राजा जुवे छे के 'उत्तरदिशा तरफ थी आवती कूवामां पडेली, अडधी म्लान थयेली पुष्पमाला मारा वड़े ग्रहण कराई अने ते माला ओचिंती सुरभिगंधयुक्त ताजी थई गई. (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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