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________________ विचरस्सरःतीरे, इति तस्य ओ वचनं श्रुत्वा । भणितं दर्शय भद्रक ! तत् शीघ्रं सरोवरमस्माकम् । १३१। युग्मम् गुजराती अनुवाद १३०-१३१. त्यारवाद डरना मार्या दूर रहेल वृक्षमां छूपाईने रहेल अमे फटी स्त्रीरहित हाथी ने त्यां सरोवरने किनारे फरतो जोयो, आ प्रमाणे तेना वचन सांथलीने अमे का 'हे भद्र! जल्दी अमने ते सरोवर बताव! (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद उसके बाद डर के मारे पेड़ों की आड़ में छुपकर मैंने फिर स्त्री रहित हाथी को उस तालाब के किनारे टहलते हुए देखा। ऐसा सुनकर हमने शीघ्र वह तालाब कहां है? बताने को कहा। गाहा अह तेण दंसियं तं पलोइयं सर-वरं समं तेण । न य उवलद्धा देवी निउणंपि गवेसमाणेहिं ।। १३२।। संस्कृत छाया अथ तेन दर्शितं तत् प्रलोकितं सरोवरं समं तेन । न चोपलब्या देवी निपुणमपि गवेषयमाणैः ।। १३२ ।। गुजराती अनुवाद १३२. पछी ते कार्पटिके बतावेल सरोवर तेनी साथे जोयुं, खूब सारी रीते शोधखोल करवा छतां महाराणीनी प्राप्ति न थई! हिन्दी अनुवाद फिर उस यात्री के बताने के अनुसार हमने उसके साथ उस तालाब को देखा! किन्तु अच्छी प्रकार से खोजने पर भी महारानी कहीं नहीं मिलीं। गाहा सर-वर-जोयण-मित्ते विउत्त-पुरिसेहिं पाविओ हत्थी । तं धित्तुं निराणंदा इहागया देव-मूलम्मि ।।१३३। संस्कृत छाया सरोवरयोजनमात्रे वियुक्तपुरुषैः प्राप्तो हस्ती । तं गृहीत्वा निरानन्दा इहाऽऽगता देवमूले ।। १३३ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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