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________________ अर्थिजनपूरिताशं दानं ददती समस्तनगरे । आनन्दनिर्भराभिः स्तूयमाना नगरनारीभिः ।। १०५ ।। आहिण्ड्य विविधं चतुष्कन्त्रिकचत्वरेष्विच्छया । अथ पुरवराद् बहिर्निःसृतः कुञ्जरः क्रमशः ।। १०६ ।। चतसृभिः कलापकम् गुजराती अनुवाद १०३-१०६. (राणीना दोहदनी पूर्ति) रानी के दोहद की पूर्ति हवे नियुक्त पुरुषो वड़े शणगार सजीने श्रेष्ठ पट्टहस्ती लवायो. ते हाथी पर राजा आरूढ थया, अने महाराणी राजानां खोलामां बेठी, राणीनी ऊपर मुक्ताफल थी शोभतुं श्वेत आतपत्र स्वयं राजाएं धारण कर्यु. त्यारबाद स्तुति पाठकोनो समुदाय जयजयकार करतो हतो। हाथी विविध मार्गोथी पसारथतो नगर बहार निकल्यो । हिन्दी अनुवाद सभी नियुक्त पुरुषों ने सज-धज कर श्रेष्ठ पट्ट हाथी को लियां, राजा उस हाथी पर आरूढ़ हुए और महारानी उनकी गोद में बैठीं। रानी के ऊपर मोतियों से शोभित छत्र राजा ने धारण किया। उसके पश्चात् स्तुति पाठक जय-जयकार कर रहे थे। हाथी विविध मार्गों से फिरता हुआ नगर के बाहर निकला। गाहा सहसच्चिय उम्मिट्ठो विच्छोलिंतो समत्थ- जण-नियरं । अइवेगेण पयट्टो इसान - दिसा मुहो ताए । । १०७ ।। संस्कृत छाया सहसैव निरङ्कुश (उम्मिट्ठो) कम्पयन् समस्तजननिकरम् । अतिवेगेन प्रवृत्तः ईशानदिग्मुखस्तदाः ।। १०७ ।। गुजराती अनुवाद - १०७. ( गजराजनो उपद्रव) अने ओचींतो गांडो थई गयेलो ते हाथी समस्त जन समूहने कंपावतो, ईशान दिशा तरफ त्यारे अतिवेग वड़े चाल्यो. हिन्दी अनुवाद - ( गजराज का उपद्रव) अचानक पागल हो गया वह हाथी समस्त जनसमूह को कम्पायमान करता हुआ ईशान दिशा की तरफ अतिवेग से बढ़ा।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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