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________________ हिण्डे राजन् ! नगरे परिवृत्ता सकलभृत्यवर्गेण । राज्ञा भणितं सुन्दरि ! क्रियते अधुना द्रुतमेतद् ।।१०१।।युग्मम् । अथ प्रवरपट्टहस्ती श्रृङ्गारयित्वाऽऽनीतो नियुक्तः । तत्राऽऽरूढो राजा देवी पुनस्तस्योत्सङ्गे ।। १०२ ।। गुजराती अनुवाद- . १०-१०२. श्रेष्ठ हाथी उपर बेठेली, याचक वर्गने दान आपती, तमारा खोलामां बेठेली, स्वी मने तमे छा धारण करता हो ते रीते हे राजन्! समस्त चाकर समुदायथी परिवरेली हुं नगरमां फळं... त्यारे राजार का हे सुन्दरि! हमणा शीघ्र आ कराशे।। हिन्दी अनुवाद श्रेष्ठ हाथी पर बैठी हुई, याचक वर्ग को दान देती हुई, आपकी गोद में बैठी हुई आप मेरे लिए छत्र धारण किये हो, इस प्रकार हे राजन्! मैं समस्त सेवक समुदाय के साथ नगर में फिरूं ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है। तब राजा ने कहा, 'हे सुन्दरी! यह मैं शीघ्र ही करवाऊंगा। गाहा उवरि धवलायवत्तं मुत्ताहल-रेहिरं सयं रन्ना। धरियं तत्तो विविहं पढंत-थुइ-पाढ-निवहेण ।।१०३।। तूरेसु रसंतेसु वज्जतेसु य असंख संखेसु । कलपाणएहिं विहिए वियंभमाणे य संगीए ।।१०४।। अस्थि-जण-पूरियासं दाणं देता समत्थ-नयरम्मि । आणंद-निन्भराहिं थुव्वंता नयर-नारीहिं ।।१०५।। आहिंडिऊण विविहं चउक्क-तिय-चच्चरेसु इच्छाए । अह पुर-वराउ बाहिं नीहरिओ कुंजरो कमसो ।।१०६।। संस्कृत छाया उपरि धवलातपत्रं मुक्ताफलराजमानं स्वयं राज्ञा । घृतं ततो विविध पठ्यमानस्तुतिपाठनिवहेन ।। १०३ ।। तूर्येषु रसत्सु वाद्यमानेषु चाऽसंख्यसंख्येषु । कलपानकैर्विहिते विजृम्भमाणे च सङ्गीते ।। १०४ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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