SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजराती अनुवाद १८. पण लज्जाथी राणी कोई ने कई पण कहेती नथी त्यारे क्यारेक सुकाता शरीरवाली तेने जोईने राजास कह्यु... हिन्दी अनुवाद किन्तु शर्म के मारे रानी ने इस बात को किसी से नहीं बताया। फिर सुख रहे शरीर वाली रानी को देखकर राजा ने कहागाहा देवि! तुह किं न पुज्जइ दीससि अइदुब्बला जओ इण्डिं । देवीए तो भणियं दोहलओ एस मे नाह! ।।९९।। संस्कृत छाया देवि ! तव किं न पूर्यते श्यसेऽतिदुर्बला यत इदानीम् । देव्या ततो भणितं दोहदक एष मम नाथ ! ।। ९९ ।। गुजराती अनुवाद ९९. हे देवि! शुं तारी इच्छा पूर्ण थती नथी. के जेथी हमणां तु अति दुबली देखाय छे? त्यारे महाराणीस कां 'हे नाथ! मने दोहद उत्पन्न थयो छे. हिन्दी अनुवाद हे देवि! क्या आपकी इच्छा पूर्ण नहीं हो रही है जिससे कि आप अत्यन्त दुर्बल दीख रही हो। तब महारानी ने कहा, हे नाथ! मुझे दोहद उत्पन्न हुआ है। गाहा वर-वारणमारूढा दाणं दिती य अस्थि-लोयस्स । तुह-उच्छंग-निविट्ठा तुमए छत्तं धरतेणं ।।१०।। हिंडामि राय! नयरे परियरिया सयल-भिच्च-वग्गेण। रन्ना भणियं सुंदरि! कीरइ अहुणा दुयं एयं ।।१०१।। अह पवर-पट्ट-हत्थी सिंगारिय आणिओ निउत्तेहिं । तत्थारूढो राया देवी उण तस्स उच्छंगे ।।१०२।। संस्कृत छाया वरवारणमारूढा दानं ददती चार्थिलोकस्य । तवोत्सङ्गनिविष्टा त्वया छत्रं धारयता ।। १०० ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy