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________________ गाहा दावेसु अभय दाणं विविहाभिग्गह- तवेसु उज्जमसु । - एवं कयम्मि नर- वर! सव्वंपि हु सुंदरं होही ।। ९२ ।। संस्कृत छाया दापय अभयदानं विविधाऽभिग्रहतपस्सु उद्यच्छ । एवं कृते नरवर ! सर्वमपि खलु सुन्दरं भविष्यति ।। ९२ ।। गुजराती अनुवाद ९२. अभयदान आपो, विविध प्रकारनां अभिग्रह तथा तपमां उद्यम करो, आ प्रमाणे कराये छते हे नरपति! बधुं ज सुंदर थशे. हिन्दी अनुवाद आप अभयदान दें। विभिन्न प्रकार के अभिग्रह पूर्वक तप करें। ऐसा करने से हे राजन् ! सब कुछ अच्छा होगा। गाहा इय भणिउं धणदेवो समप्पिडं अंगुलीययं निययं । पणमित्ता रायाणं विणिग्गओ राय • भवणाओ ।। ९३ । संस्कृत छाया इति भणित्वा धनदेव: समर्प्य अङ्गुलीयं निजम् । प्रणम्य राजानं विनिर्गतो राजभवनात् ।। ९३ ।। गुजराती अनुवाद ९३. आ प्रमाणे कहीने राजाने पोतानी अंगुठि समर्पित करीने, राजाने प्रणाम करीने धनदेव राजभवनथी पाछों फर्यो! हिन्दी अनुवाद ऐसा कहकर राजा को अपनी अंगूठी समर्पित कर तथा राजा को प्रणाम कर धनदेव वापस राजभवन आ गया। गाहा रन्नावि हुं गंतूणं देवी- भवणम्मि सयल वृत्तंतो । सिट्ठो समप्पियं तह देवीए अंगुलीयं तं । । ९४ । । -
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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