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संस्कृत छाया
पूर्वविरुद्धोऽपि सुरो हरणे देव्या भवेदसमर्थः । एतस्य प्रभावादथ कथमपि कुर्यादपहरणम्। ८९ ।। तथापि खल्वपकारे शक्ष्यते नैव वर्तितुं वैरी ।
ज्ञात्वेदं नरेश्वर ! मा शोकं किञ्चिदपि कुरुत ।। ९० ।। गुजराती अनुवाद__८९-९०. पूर्वनो शत्रुदेव पण आ दिव्यमणिना प्रध्यावथी महाराणीनुं अपहरण करवा असमर्थ थशे. ओ कदाच अपहरण करशे तो पण तेनो अपकार करवा ते वैरी समर्थ नहीं ज बने. आ जाणीने हे नरेश्वर! जरा पण शोक न करो... हिन्दी अनुवाद
पूर्व का शत्रुदेव भी दिव्य मणि के प्रभाव से महारानी का अपहरण करने में असमर्थ हो जायेगा। यदि कदाचित् अपहरण कर भी लिया तो उनका अपकार तो कर ही नहीं सकता। इसलिए यह जानकर हे राजा! आप शोक न करें।
गाहा
अन्नं च। सुविण-पडिघायणत्यं कारेसु जिणालएसु महिमाओ।
पूएस समण-संघं तदुचिय-वत्थासणाईहिं ।।११।। संस्कृत छाया
अन्यच्च । स्वप्नप्रतिघातार्थ कारय जिनालयेषु महिम्नः ।
पूजय श्रमणसचं तदुचितवस्त्रासनादिभिः ।। ९१ ।। गुजराती अनुवाद
११. अने वली. स्वप्नना प्रतिघात माटे जिनालयोमा महोत्सव कटरावो, सुयोग्य वस्त्र आसनादि बड़े श्रमण संघनो सत्कार करो. हिन्दी अनुवाद
स्वप्न के प्रतिघात के लिए अथवा स्वप्न का आपके जीवन पर कोई असर न पड़े, इसके लिए जिनमन्दिरों में महोत्सव और श्रमण संघ को सुयोग्य, वस्त्र आदि दान करें।