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________________ हिन्दी अनुवाद फिर भी एक उपाय किया जा सकता है। भले ही उससे स्वप्न का प्रतिघात न हो, किन्तु मंच पर से गिरे हुए को भूमि का ही आसरा होता है। गाहा पल्लीवइणा तइया दिव्व मणी जो समप्पिओ मज्झ । सो एस अंगुलीयग- निवेसिओ चिट्ठउ करम्मि ।। ८७ ।। एसो अचिंत सत्ती अणेय ठाणेसु दिट्ठ- माहप्पो । ता एयं देवीए करट्ठियं देव! कारेह ।। ८८ ।। संस्कृत छाया पल्लीपतिना तदा दिव्यमणि-र्यः समर्पितो मम । स एष अङ्गुलीयकनिवेशितस्तिष्ठतु करे ।। ८७ ।। एषोऽचिन्त्यशक्तिरनेकस्थानेषु छष्टमाहात्म्यः । तस्मादेतं देव्याः करस्थितं देव ! कारयत ।। ८८ ।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद ८७-८८. पल्लिपतिए त्यारे मने जे दिव्यमणि आप्यो हतो ते आ हाथना अंगुठामा रहेलो छे. आ दिव्यमणि अचिन्त्य शक्तियुक्त छे, तेनो प्रभाव अन्य स्थानोमां जोवायो छे. तेथी हे देव! ए दिव्यमणि महाराणीना हाथमां पहेरावो.. (युग्मम्) हिन्दी अनुवाद पल्लिपति ने उस समय जो मणि दिया था वह हमारे हाथ के अंगूठे में है। यह दिव्य मणि अचिन्त्य शक्तियुक्त है। उसका प्रभाव अन्य स्थानों में देखा गया है। इसलिए हे देव! यह दिव्यमणि रानी को पहनाइए । गाहा पुव्व - विरुद्धोवि सुरो हरणे देवीइ होज्ज असमत्थो । एयस्स पभावाओ, अह कहवि करिज्ज अवहरणं ।। ८९ । । तहवि हु, अवगारम्मी सक्किस्सइ नेव वट्टिउं वइरी ।। नाउं इमं नरेसर ! मा सोगं किंचिवि करेह ।। ९० ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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