SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया राज्ञापि खलु गत्वा देवीभवने सकलवृत्तान्तः। शिष्टः समर्पितं तथा देव्यै अगुलीयं तम् ।। ९४ ।। गुजराती अनुवाद १४. राजास पण महाराणीना भवनमां जई सकल वृत्तांत कहयो. तथा महाराणी ने ते अंगूठी आपी। हिन्दी अनुवाद राजा ने महासनी के भवन में जाकर उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया और महारानी को वह अंगूठी दे दी। गाहा भणिया य देवि! एयं खणंपि हत्थाओ नेव मोत्तव्वं । एयस्स पभावाओ पभवंति न खुद्द-सत्ताई ।।१५।। संस्कृत छाया भणिता च देवि ! एतद् क्षणमपि हस्तान्नैव मोक्तव्यम् । एतस्य प्रभावात् प्रभवन्ति न क्षद्रसत्त्वानि ।। ९५ ।। गुजराती अनुवाद ९५. अने राजास कहयुं- हे देवि! आ अंगुठी क्षणवार पण हाथमाथी काढवी नहीं, आ अंगुठीना प्रभावथी क्षुद्र प्राणीओ विगेरे उपद्रव करवा समर्थ नहीं बने. हिन्दी अनुवाद राजा ने कहा, हे देवी! आप यह अंगूठी- एक क्षण के लिए भी हाथ से मत निकालिएगा। इस अंगूठी के प्रभाव से क्षुद्र प्राणी किसी प्रकार का उपद्रव करने में सफल नहीं होंगे। गाहा जिण-मंदिर-जत्ताइं कारवियं ताहि राइणा सव्वं । कमलावईवि तत्तो जाया आवन्न-सत्तत्ति ।।९६।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy