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________________ संस्कृत छाया तच्छुत्वा नरेन्द्रो जातः शोकातुरो छ हृदये । कथयति देवि ! स्वप्नो लाभं सूचयति तनयस्य ।। ६४ ।। गुजराती अनुवाद ६४. ते सांथलीने हृदयमा अत्यंत शोकातुर थयेला राजाए कहो. हे देवि! आ स्वप्न पुत्रनो लाभ सूचवे छे. हिन्दी अनुवाद यह सुनकर हृदय में अत्यन्त शोकाकुल होकर राजा ने कहा, हे देवि! यह स्वप्न पुत्र लाभ की सूचना देता है। गाहा सेसं च सुविण-जाणग-पुच्छग-विहिणा वियाणिउं तुज्झ । साहिस्सं मा काहिसि उव्वेगं किंचि हिययम्मि ।। ६५।। संस्कृत छाया शेषं च स्वप्नज्ञापकपृच्छकविधिना विज्ञाय तव । कथयिष्यामि मा करिष्यसि उद्वेगं किञ्चिदहृदये ।। ६५ ।। गुजराती अनुवाद ६५. अने चाकी- सर्व, स्वप्न जाणकारने विधिपूर्वक पूछीने, जाणीने, तने कहीश, तेथी हृदयमां जरा पण उद्वेग न कर। हिन्दी अनुवाद शेष स्वप्न पाठकों से विधिपूर्वक पूछ कर तथा जानकारी लेकर मैं आपको बताऊँगा। इसलिए आप हृदय में कोई उद्वेग न लाएं। गाहा- तत्तो पभाय-समए गंतुं अत्थाण-मंडवे राया। आणवइ सुमिण-सत्थत्थ-जाणए झत्ति बाहरह ।।६६।। संस्कृत छाया ततः प्रभातसमये गत्वाऽऽस्थानमण्डपे राजा । आज्ञापयति स्वप्नशास्त्रार्थज्ञापकान् झटिति व्याहरत ।। ६६ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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