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________________ गाहा पुणरवि बहु- कालाओ कहवि हु लद्धो स खीर- पडिपुन्नो । सिय- कुसुम - मालियाए मएवि संपूइओ तत्तो ।। ६२।। संस्कृत छाया पुनरपि बहुकालात् कथमपि खलु लब्धः स क्षीरप्रतिपूर्णः । सितकुसुममालया मयाऽपि सम्पूजितस्ततः ।। ६२ ।। गुजराती अनुवाद ६२. अने फरी पाछो घणा समये क्यांयथी पण ते कलश खीरथी भरेलो प्राप्त थयो, त्यार पछी पुष्पनी माला वड़े में पण करी | पूजा हिन्दी अनुवाद उसके बाद काफी समय बाद किसी प्रकार वह कलश खीर से भरा हुआ प्राप्त हुआ। तब मैंने पुष्प की माला से उसकी पूजा की। गाहा एवं सुमिणं दठ्ठे मुह कडुयं परिणईइ सुंदरयं जाओ भएण कंपो मह देहे तेण नर - नाह! ।। ६३।। संस्कृत छाया एतत् स्वप्नं दृष्ट्वा मुखकटुकं परिणत्यां सुन्दरम् । जातो भयेन कम्पो मम देहे तेन नरनाथ ! ।। ६३ ।। गुजराती अनुवाद ६३. प्रारंभमां कटुक तथा परिणाममां (अंते) सुंदर आ स्वप्नने जोइने हे राजन्! तेथी भयवड़े मारा शरीरमां कंप थयो छे । हिन्दी अनुवाद प्रारम्भ में कड़वा किन्तु सुन्दर अन्त वाला वह स्वप्न देखकर हे राजन! उसके भय से मेरा शरीर कांपने लगा। गाहा तं सोऊण नरिँदो जाओ सोगाउरो दढं हियए । वज्जरइ देवि! सुविणं लाभं सूएइ तणयस्स ।। ६४ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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