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________________ गाहा तहवि हु सेट्ठी जं भणइ किंचि तं चेव अम्ह कायव्वं । इय भणिए धणदेवो महा-पसाउत्ति भणिऊण ।।१२।। निय-गेहे गंतूणं तक्कालुचियं समत्थ-करणीयं । निय-परियणेण कारइ आणंदिय-माणसो जाव ।।१३।। देवी-सहिओ राया करेणुया-विसर-परिगओ ताव । संपत्तो सेट्ठि-गिहे बंदि-जणुग्घुट्ठ-जय-सहो ।।१४।। संस्कृत छाया तथाऽपि खलु श्रेष्ठी यद् भणति किञ्चित्तदेवाऽस्माकं कर्तव्यम् । इति भणिते धनदेवो महाप्रसाद इति भणित्वा ।।१२।। निजगेहे गत्वा तत्कालोचितं समस्तकरणीयम् । निजपरिजनेन कारयति आनन्दितमानसो यावत् ।।१३।। देवीसहितो राजा करेणुकाविसरपरिगतस्तावत् । सम्प्राप्तः श्रेष्ठिगृहे बन्दिजनोपुष्टजयशब्दः ।।१४।। तिसृभिः कुलकम्।। गुजराती अनुवाद १२-१४. राजानु श्रेष्ठिना घरे आगमन- छतां पण श्रेष्ठी जे कहे छे ते अमारे करवं जोइए आ प्रमाणे कहे छते धनदेव बोल्यो 'आपे महान कृपा करी राम कहीने पोताना घरे जइने आनन्दित मनवालो ते ज्यां सुधीमां करवा योग्य समस्त कार्य पोताना परिजनो पासे करावे छे। तेटलीवारमा स्तुतिपाठको द्वारा जोर जोरथी थतां 'जय' ना पूर्वक राजा हाथणीओना समूहथी युक्त देवीओ सहित श्रेष्ठिना घरे पधार्या (तिसृधिः कुलकम्) हिन्दी अनुवाद फिर भी यदि श्रेष्ठि कहते हैं तो हमें अवश्य करना चाहिए। इतना कहने पर धनदेव ने कहा, आपने मुझ पर बड़ी कृपा की यह कहकर अपने घर जाकर 'आनन्दित होता है और उस समय करणीय सभी कार्यों को अपने परिजनों द्वारा कराता है। तभी हाथियों के समूह सहित बन्दीजनों द्वारा जयघोष किए जाते हुए राजा देवी-सहित श्रेष्ठि के घर पहुंचा। तिसृभिः कुलकम्। गाहा कय-मंगलोवयारो उत्तरिय करेणुयाइ देवि-जुओ। वर-मुत्ताहल-विरइय-चउक्क-सीहासणे पवरे ।।१५।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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