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________________ उवविठ्ठो देवि-जुओ तत्तो य विलासिणीहिं पवराहिं । । आरत्तियावयारण-पमुहम्मि विहिम्मि विहियम्मि ।।१६।। भुत्तो दिव्याहारं निय-परियण-संजुओ जहा-विहिणा। मोसीस-विलत्तंगो परिहाविय-दिव्व-वर-वत्थो ।।१७।। संस्कृत छाया कृतमङ्गलोपचार उत्तीर्य करेणोदेवीयुतः । वरमुक्ताफलविरचितचतुष्कसिंहासने प्रवरे ।।१५।। उपविष्टो देवीयुतः ततश्च विलासिनीभिः प्रवराभिः । आरात्रिकावतारणप्रमुखे विधौ विहिते ।।१६।। भुक्तवान् दिव्याहारं निजपरिजनसंयुक्तो यथा विधिना । गोशीर्षविलिप्ताङ्गः परिधापितदिव्यवरवस्त्रः ।।१७।। तिसृभिः कुलकम् ।। गुजराती अनुवाद १५-१८. महाराणी सहित हाथणी पर थी ऊतीने करायेला मंगल ऊपचारवालो राजा राणी सहित श्रेष्ठ मुक्ताफलथी निर्मित चतुष्क (चार खूणा वाला) सिंहासन पर बेठो...त्यां श्रेष्ठ स्त्रीओ वड़े आरती उतारण वि. विधि कराये छते..विधिपूर्वक गोशीर्ष चंदनथी विलेपन करायेल अंगवाला, धारण करेला दिव्य वस्त्रयुक्त राजार स्व परिजन सहित दिव्य आहार, भोजन कर्यु... हिन्दी अनुवाद मंगलोपचार कराए जाने के बाद राजा हाथी से उतरकर देवी सहित श्रेष्ठ मोतियों से अलंकृत चार पैरों वाले सिंहासन पर बैठा। देवी सहित बैठे राजा की श्रेष्ठ स्त्रियों ने आरती उतारी। तत्पश्चात् गोशीर्ष चन्दन आदि से विलेपित अंग वाले राजा ने दिव्य वस्त्रों वाले परिधान धारण कर स्वपरिजनों सहित दिव्य आहार का भोग किया। तिसृभिः कुलकम्। गाहा विणय-नएणं तत्तो धणदेवेणं इमं तु विन्नत्तो । देवीए पिय-भगिणी वज्जरइ इमं महा-राय! ।।१८।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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