________________
64 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 जिस अलङ्कार में किसी कारण विशेष के बिना स्वाभाविक गुणों के उत्कर्ष से ही कार्य का होना प्रकट होता है उसे विभावना कहते हैं। जब कारण न होने पर भी कार्य हो जाये अर्थात् जलना कार्य के लिए अग्नि रूपी कारण होना चाहिए। यहाँ अग्नि रूप कारण के न होने पर भी जलना रूपी कार्य हो गया है। जब अपूर्ण कारण से कार्य हो, रुकावट होने पर भी कार्य हो जाये, विपरीत कारण से कार्य हो तथा कार्य से कारण उत्पन्न हो जाये तब भी विभावना अलङ्कार होता है। यथा -
णय-विक्कमोवहोज्जा सव्वाण वि पत्थिवाण एस मही।
ण उणेक्क-विक्कम-रसा हवंति सिरि-भाइणो पुरिसा ॥१५१॥ अर्थ - इस पृथ्वी का सभी राजा नीति और पराक्रम से उपभोग कर सकते हैं। किन्तु केवल पराक्रम से पुरुष लक्ष्मी का पात्र नहीं हो सकता है। १५. दीपक -
आदिमध्यान्तरत्येकपदार्थेसडंगतिः।
वाक्यस्थ यत्र जायते तदुक्तं दीपकं तथा।। उपमेय और उपमान दोनों के किसी गुण-धर्म का किसी क्रिया अथवा विशेषण द्वारा केवल एक बार वर्णन किया जाये। अर्थात् जिस स्थान पर आदि, मध्य अथवा अन्त में रहने वाली एक क्रिया से वाक्य का मालादीपक सम्बन्ध उत्पन्न होता है, वहाँ पर दीपक अलङ्कार माना जाता है। यथा -
इमिणा सरएण ससी ससिणा वि णिसा णिसाए कुमुय वणं।
कुमुय-ववेण व पुलिणं पुलिणेण व सहइ हंस-उलं ॥२५।। अर्थ - इस शरद ऋतु से चन्द्रमा, चन्द्रमा से रात्रि, रात्रि से कुमुदवन, कुमुदवन से नदी का तट और नदी के तट से हंस समूह सुशोभित हो रहा है। अन्य गाथा १६ १६. व्यतिरेक -
केनचिद्यत्र धर्मेण द्रयोः संसिद्धसाम्ययोः। भवत्येकतराधिक्यं व्यतिरेकः स उच्यते ॥