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________________ लीलावाई कहा में अलंकार व्यवस्था : 63 १२. अपह्नुति - नेतदेदिदं हेतीदत्यपहवपूर्वकम् । उच्चतेयत्र सादृश्याद पहुतिरियं यथा । जहाँ उपमेय का निषेध करके उपमान का होना बताया जाये वहाँ अपह्नति अलङ्कार होता है। यथा - अज्ज वि महग्गि-पसरिय-धूम-सिहा-कलुसियं व वच्छयलं। . उव्वहइ मय-कलंकच्छलेण मयलंछणो जस्स ॥१९॥ जिसके यक्ष की अग्नि से उत्पन्न होकर फैले हुए धूम की शिक्षा से कलुषित चन्द्रमा मृग कलंक के बहाने से आज भी अपने कलंकित वक्षस्थल को धारण किये हुए है। अन्य गाथा :- ३७ १३. विरोधाभास - आपाते हि विरुद्धत्वं यत्र वाक्ये न तत्तवतः। शब्दार्थकृतमाभाति स विरोध: स्मृतो यथा ॥ जिस कथन में वस्तुत: विरोध न होने पर भी विरोध दिखाई पड़े वहाँ विरोधाभास अलङ्कार होता है। यथा जिंतच्छरो वि रामाणुलंघिओ णिव्विसो वि विसमइओ। करि-तुरय-वज्जिओ वि हु पडिरक्खिय-महिहरुघाओ ॥१६९।। अर्थ - अप्सराओं के निकल जाने पर भी स्त्रियों से अनुलंघित था अर्थात् रामचन्द्र के द्वारा लांघा गया था। विषहीन होने पर भी विष से युक्त था अर्थात् पानी से युक्त था। हाथी और घोड़ों से रहित होने पर भी ऐरावत हाथी और उच्चैश्रवा घोड़ा से रहित होने पर भी राजाओं से परिरक्षित था अर्थात् पर्वतों से घिरा हुआ था। गाथा - ३,१००,१७० अन्य १४. विभावना - बिना कारणसद्भावं यत्र कार्यस्य दर्शनम् । नैसर्गिकगणोत्कर्षभावनात्सा विभावना ॥
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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