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________________ 54 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 ४. यमक अलंकार : स्यात्पादपदवर्णानामावृत्ति: संयुतायुता ।१। यमकं भित्रवाच्यानामादिगध्यान्त गोचरम् ।। भिन्न अर्थ वाले पाद, पद और वर्ण की संयुक्त या असंयुक्त रूप से आवृत्ति को यमक कहते हैं। यमक पद्य के आदि, मध्य और अन्त में भी हो सकता है। जब कोई शब्द अनेक बार आए और अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो उसे यमक अलङ्कार कहते हैं। यमक के भेद - १. अभंग यमक - २. सभंग यमक, यथा - जयंति ते सज्जण-भाणुणो सया वियारिणो जाण सुवण्ण-संचया । अइट्ठ-दोसा वियसंति संगमे कहाणुबंधा कमलायरा इव ॥१२॥ उपरोक्त गाथा के अन्त में यमक है। यथा - सूरो विण सत्तासो सोमो वि कलंक-वज्जिओ णिच्चं । भोई वि ण दोजीहो तुंगो वि समीव-दिण्ण-फलो ॥६७॥ ५. श्लेष अलङ्कार श्लेषो यत्र पदानि स्युः स्यूतानीव परस्परम् । ओजः समासभूयस्त्वं तद्वघेष्वतिसुन्दरम् । जहाँ उसी पद से या भिन्न पद से एक ही वाक्य अनेक अर्थों को व्यक्त करता है वहाँ श्लेष अलङ्कार होता है। यथा - घिप्पइ कणयमयं पिव पसाहणं जणिय-तिलय-सोहेण । अब्भहिय-जणिय-सोहं कणियार-वणं वसंतेण ॥७७।। अन्य गाथा - १,२,३,४,५,६,५१ श्लेष के दो भेद होते हैं- १. अभंग श्लेष व २. सभंग श्लेष। अभंग श्लेष :- जहाँ शब्द के टुकड़े किए बिना ही उससे कई अर्थ निकले वहाँ अभंग श्लेष होता है।
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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