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________________ लीलावाई कहा में अलंकार व्यवस्था : 55 सभंग श्लेष :- जहाँ शब्द के टुकड़े करने से कई अर्थ निकले, वहाँ सभंग श्लेष होता है। ६. वक्रोक्ति अलङ्कार : जब उत्तर देने वाला व्यक्ति किसी पद को भंग करके या उस पद में आये श्लेष के आश्रय से पूछने वाले के द्वारा प्रस्तावित अर्थ के द्योतक वाक्य का आश्रय लेकर उत्तर देता है तो वह वक्रोक्ति अलङ्कार है। अर्थात् जहाँ किसी उक्ति से वक्ता के अभिप्रेत आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाए वहाँ वक्रोक्ति अलङ्कार होता है। यथा - प्रस्तुतादपरं वाच्यमुपादायोत्तर प्रदः । भङ्ग्श्लेषमुखेनाह यत्र वक्रोक्तिरेव सा ।। वक्रोक्ति अलङ्कार के दो भेद होते हैं: १. श्लेषण वक्रोक्ति :- जहाँ श्लेषण के कारण अन्य अर्थ की कल्पना की जाये वहाँ श्लेषण वक्रोक्ति अलङ्कार माना जाता है। यथा को हसइ को व गायइ को णच्चइ को सवेइ मेहुणयं । सरयसिरीए विउत्तो विरसो एसम्ह वीवाहो ॥३२०॥ २. काकु वक्रोक्ति :- जब शब्द इस प्रकार उच्चारित किया जाए कि सुनने वाला उसका कोई दूसरा ही अर्थ ले ले, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलङ्कार होता है। ७. पुनरुक्तिवदाभास : जब अर्थ की पुनरुक्ति दिखाई पड़े परन्तु वास्तव में पुनरुक्ति न हो उसे पुनरुक्तिवदाभास अलङ्कार कहते हैं। - कीए वि महा-संमद्द - सेय-तण्णाय - णीवि-बंधाए। दुव्वोज्झो उज्झिय- मेहलो वि जाओ णियंब - भरो ॥१२२॥
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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