SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 कारण से ही आरम्भ होनी चाहिए। इसको ध्यान में रखकर गाँधी जी ने अपनी आखिरी प्रसिद्ध तावीज की व्याख्या में कहा था कि जब हमें कोई असमंजस हो या निर्णय लेने में दुविधा हो तो उसका निर्णय करते समय हमें चाहिए कि यदि हमारे काम से हमसे अधिक अंतिम व्यक्ति लाभान्वित होता है तो वह काम करना चाहिए। इसके पीछे मानवता का परम उत्कर्ष तो है ही, एक आध्यात्मिक विचार यह है कि भगवान दरिद्र नारायण हैं। जो व्यक्ति दीन-हीन, दुखी-दरिद्र, अकिंचन है, उसमें भगवान का दर्शन करना ही सार्थक है। गीता में कहा गया है- “दरिद्रान् भर- कौन्तेय । रविन्द्रनाथ ने भी गीतांजलि में कहा है कि भगवान का चरम स्थान अंतिम, पददलित एवं पीड़ित व्यक्ति के पास है। रामकृष्ण ने तो "जेई जीव, तेई शिव" कह कर जीव को ही ईश्वर माना। गाँधीजी के आध्यात्मिक शिष्य संत विनोबा भावे ने अपनी पुस्तक "स्वराज्य-शास्त्र" में राज्य के विकास को चार श्रेणियों में क्रमशः एकायतन, अल्पायतन, बहुआयतन के साथ सर्वायतन मानते हुए सर्वोदय-दर्शन के अनुसार राज्य व्यवस्था में सर्वायतन यानि जो राज्य- व्यवस्था "सभी का, सभी के" द्वारा एवं सभी के लिये हो" माना था। असल में यह शब्दांतर इसलिए किया गया कि पाश्चात्य नीतिशास्त्रज्ञों में सिजविक, बेंथम, मिल आदि ने उपयोगितावाद का नया दर्शन खड़ा कर उसे "अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख' का आकर्षक नारा दिया था। किन्तु चूँकि इसका मूलाधार भौतिकवादी जीवन-दर्शन था, वह सर्वोदय-विचार का मंत्र नहीं स्वीकार किया गया। इसके बाद से वैदिक वाङ्मय से “सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वेसन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिदुःख भाग्भवेत्” का अधिक व्यापक आदर्श स्वीकार्य हुआ। बहुसंख्यक या बहुमत का आधार अल्पमत को खारिज करता है। यही कारण है कि पाश्चात्य राजतंत्र में संसदीय प्रजातन्त्र में बहुमत का आधार लोकतंत्र का अधिष्ठान बन गया जिसके कारण उनके विकृतियों का जन्म हुआ। बहुसंख्यक का गणितीय समीकरण 51/49
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy