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सर्वोदय तीर्थमिदं तवैव : 3 भी हो सकता है एवं यदि 99/100 लेकर 51/49 भी हो सकता है। भारतीय संसद में हाल ही में मात्र 1 वोट से अटलजी की सरकार अपदस्थ हो गयी। एक राज्य सरकार आज भी अल्पमत में रहकर शासन कर रही है। लेकिन बहुमत अल्पमत के अलावे उपयोगितावाद का आधार सर्वतोभद्र नहीं है और उसकी दृष्टि मात्र भौतिकवादी है। हमें सोचना होगा कि सर्वोदय में 'उदय' शब्द केवल भौतिक उदय की अपेक्षा नहीं रखता है, उपनिषद् में जिस प्रकार प्रेय एवं श्रेय तथा धम्मपद में पिय-सिय वगगो का और न्याय वैशेषिक में अभ्युदय निःश्रेयस है। साम्यसूत्र में अभिधेयम परमसाम्य में सबका समन्वय है, उसी प्रकार का अन्तर उपयोगितावाद एवं सर्वोदय में है। विनोबा जी ने साम्यसुत्र में 'अभिधेय परम साम्यम्' की जब उपास्थापना की तो समता में केवल आर्थिक समता का ही नहीं बल्कि राजनैतिक, सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक समत्व की बात रखते हैं। इस अर्थ में समन्तभद्र के सर्वोदय की अवधारणा मूलरूप से आध्यात्मिक है, जबकि गाँधीजी द्वारा प्रतिपादित सर्वोदय आध्यात्मिक के साथ-साथ लौकिक भी है जिसमें जीवन का समस्त पक्ष समाहित है। जिसे हम संरचनात्मक सर्वोदय कह सकते हैं। आचार्य समन्तभद्र की भावना अन्य संतों की तरह व्यक्तिगत साधना और व्यक्तिगत समाधि की प्रतीत होती है। व्यक्तिगत कर्म के द्वारा मनुष्य बन्धन में पड़ता है और कर्म के क्षय होने से ही मोक्ष की सिद्धि होती है। गाँधी ने व्यक्तिगत सदाचार को कम महत्त्व नहीं दिया और जैनाचार्यों ने पंचमहाव्रत को, बौद्धों ने पंचशील तथा सांख्य-योग-वेदान्त ने पंचयम् के रूप में व्यक्तिगत चारित्रिक साधना को अपनाते हुए एकादश व्रत का विधान रखा है। किन्तु जहाँ संत आदि अंतर्मखता के कारण केवल व्यक्तिगत जीवन शुद्धि पर जोर देते हैं, वहाँ गाँधी उनके विचार को मानते हुए देश-काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति के साथ समाज को भी ध्यान में रखते हुए व्यवस्था की पवित्रता पर भी ध्यान देते हैं। भागवत महापुराण में प्रह्लाद ने भगवान द्वारा परमपद प्राप्त करने के लिए स्वर्ग जाना छोड़ दिया था और कहा था जब तक