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________________ 'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 73 निर्माण पुण्य के लिए प्रेरक आचार्यों के नाम, कुल, गोत्र एवं शाखा के उल्लेख के साथ होता था। इस क्रम में प्रो० प्रसाद ने दक्षिण के अभिलेखों, गुप्तकाल के अभिलेखों, राजस्थान के अभिलेखों एवं मध्यकाल के अभिलेखों पर प्रकाश डालते हुए उनके ऐतिहासिक महत्त्व को रेखांकित किया। 31. भारत के संरचनात्मक जैन मन्दिर : आबू के विशेष सन्दर्भ में : यह व्याख्यान प्रो0 हरिहर सिंह, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का था। प्रो0 सिंह ने जैन मन्दिरों की सामान्य विशेषताओं को व्याख्यायित करते हुए संरचनात्मक जैन मन्दिरों की विशिष्टताओं को प्रकाशित करने के क्रम में विश्वविख्यात आबू पर्वत के जैन मन्दिरों की स्थापत्य एवं कला का विशद् विवेचन किया। इस क्रम में गुजरात के प्रथम सोलंकी शासक भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह द्वारा निर्मित मन्दिर तथा सोलंकी नरेश भीमदवे द्वितीय के मंत्री तेजपाल द्वारा निर्मित मन्दिरों का उल्लेख करते हुए इन मन्दिरों को जैन मन्दिरों में प्राचीनतम एवं जैन धर्म की पूजन पद्धति के अनुकूल बताया। प्रो० हरिहर सिंह ने दिलवाड़ा के मन्दिरों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए बताया कि इसका बाहरी पक्ष बिल्कुल सादा परन्तु आन्तरिक भाग अलंकरण युक्त है। 32. महायान सम्प्रदाय में मूर्ति कला : यह व्याख्यान भारत कला भवन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व निदेशक प्रो0 डी0पी0 शर्मा का था। प्रो0 शर्मा ने बताया कि बुद्ध की मूर्ति बनाकर पूजन करने की परम्परा महायान शाखा द्वारा शुरू किया गया। उस समय गंधार कला केन्द्र महायान शाखा के विचारों को मूर्त रूप से व्यक्त कर रहा था। गंधार में तक्षशिला, पुष्कलावती, नगरहार, स्वातधारी, कपिशा, बमियान आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। प्रो0 शर्मा ने बताया कि स्थानीय भौगोलिक प्रभाव एवं लम्बे समय तक ग्रीक-रोम के
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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