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________________ 72 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 एक ही क्षण होता है। तब प्रश्न उठता है कि ज्ञान की प्रतीति का कारण क्या है? इसी के उत्तर के लिए बौद्ध दार्शनिक 'अपोहवाद' का उल्लेख करते हैं। डॉ0 उपाध्याय ने अपोह का अर्थ 'अतद्व्यावृत्ति या तद् भिन्न-भिन्नत्व बताया। जैसे– 'यह पुस्तक है'- इस ज्ञान में 'तद्' पद से पुस्तक लिया गया है और 'अतद् पद से अपुस्तक या पुस्तक से भिन्न। उन्होंने व्यावृत्ति का अर्थ अतिरिक्त या अलग' बताया। बौद्ध दर्शन के अनुसार जिस समय 'यह पुस्तक है ऐसा ज्ञान होता है वह ज्ञान अपुस्तक व्यावृत्तिरूपी पुस्तकत्व धर्म के कारण होता है। यही पुस्तकत्व धर्म सभी पुस्तकों के विषय में एकाकार प्रतीति का कारण है। डॉ0 उपाध्याय ने बताया कि बौद्ध दर्शन के अनुसार किसी भी वस्तु के विषय में ज्ञान का कारण उस वस्तु का विशिष्ट धर्म है न कि जाति। यह विशिष्ट धर्म ही बौद्ध दर्शन में 'अपोह' नाम से जाना जाता है। 30. जैन अभिलेख : यह व्याख्यान राष्ट्रीय प्रोफेसर एवं पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व निदेशक प्रो0 महेश्वरी प्रसाद द्वारा दिया गया। प्रो0 प्रसाद ने बताया कि जैन अभिलेख जैन धर्म एवं संस्कृति की ऐतिहासिकता की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इस क्रम में अशोक के स्तम्भ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। नागार्जुन एवं बराबर की गुफाओं से प्राप्त अभिलेखों से स्पष्ट है कि ये गुफाएँ आजीवकों को दान में प्राप्त थीं जिनका जैनों से पृथक् अस्तित्व मात्र 200-300 वर्ष तक रहा। बाद में इनका जैन सम्प्रदाय में विलय हो गया। प्रो० प्रसाद ने खारवेल के अभिलेखों का विवेचन करते हुए बताया कि यह जैन इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें 84 कलाओं से युक्त संगीतमय उत्सव का उल्लेख होने के साथ-साथ नन्द राजा द्वारा ले जायी गयी रत्नजड़ित एवं कीमती मूर्ति को खारवेल द्वारा वापस लाये जाने का भी उल्लेख है। उन्होंने बताया कि माथुरी अभिलेखों से पता चलता है कि प्रारम्भ में अभिलेखों का
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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