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'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 59 रचना किया। इस क्रम में उन्होंने कर्नाटक के बादामी और अहिरोली की गुफाओं एवं एलोरा की गुफाओं का भी विशद् विवेचन किया। 8. सामाजिक जीवन में अहिंसा : बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में: यह व्याख्यान प्रो0 रमेश कुमार द्विवेदी, बौद्ध दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी का था। उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म का उद्देश्य बहुजन हिताय बहुजन सुखाय है, जो अहिंसा की आधारशिला पर अवलम्बित है। क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति ही हिंसा का प्रमुख कारण है। यदि हम राग-द्वेष को त्यागकर बुद्ध वचनों का अनुसरण करें तभी अहिंसा की स्थापना सम्भव है। इस सम्बन्ध में उन्होंने मैत्री, मुदिता, करुणा और उपेक्षा- इन चार ब्रह्म विहारों का विवेचन करते हुए आर्य अष्टांगिक मार्ग को अनुकरणीय बताया। 9. इतिहास के जैन स्रोत : यह व्याख्यान डॉ० उमेश चन्द्र सिंह, इतिहास विभाग, तिब्बती अध्ययन केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सारनाथ, वाराणसी का था। डॉ. सिंह ने अपने व्याख्यान में भारतीय एवं पाश्चात्य ऐतिहासिक परम्परा की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए दो प्रकार के जैन ऐतिहासिक स्रोतों-साहित्यिक एवं अभिलेखीय स्वरूपों पर विशद् प्रकाश डाला। उन्होंने श्वेताम्बर परम्परा के 45 आगम साहित्यों- 12 अंग साहित्य, 12 उपांग सूत्र, 10 प्रकीर्णक साहित्य, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र एवं 2 चूलिका सूत्रों को इतिहास के जैन स्रोत के रूप में विवेचित किया। डॉ० सिंह ने दो प्रकार के अभिलेखीय स्रोतों - 1. राजनैतिक और गैर राजनैतिक तथा 2. उत्तर तथा दक्षिण क्षेत्र के अभिलेखों के विवेचन के क्रम में उदयगिरि, खण्डगिरि, कर्नाटक और तमिलनाडु के अभिलेखों के साथ-साथ हाथी गुम्फा सहित 84 अभिलेखों को इतिहास के जैन स्रोत के रूप में विवेचित किया। व्याख्यान के अन्त में उन्होंने कहा कि यदि जैन अभिलेख न होते तो शायद ऐतिहासिक मूल्याकंन विवादित रह जाता।