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'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 57 तप में ध्यान अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। इस क्रम में उन्होंने आर्त्तध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान इत्यादि का विशद् विवेचन किया। उन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द, पूज्यपाद, यशोविजय, अकलंक, हरिभद्र आदि के ध्यान सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए ध्यानशतक, ध्यान विचार, समाधितंत्र, मोक्षपाहड़, स्वरूप सम्बोधक, ब्रह्मसिद्धान्त समुच्चय इत्यादि ध्यान सम्बन्धी जैन साहित्यों पर प्रकाश डाला। 5. बौद्ध सम्प्रदाय : यह व्याख्यान प्रो0 प्रद्युम्न दूबे, विभागाध्यक्ष, पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का था। प्रो0 दूबे ने बताया कि सर्वप्रथम संघ एक था। कालान्तर में स्थविरवाद एवं महासांघिक दो भेद हुए। पुनः स्थविर के 12 भेद हुए और कालान्तर में कुल 18 भेद हुए। इसी प्रकार महासांघिक के दो भेद हुएएकव्वोहारिक और गोकुलिक। इस प्रकार प्रो० दूबे ने बौद्ध सम्प्रदाय के भेदों-प्रभेदों, उनके संस्थापकों तथा सम्बन्धित साहित्यों का विशद् विवेचन किया। प्रो0 दूबे ने बताया कि स्थविरवाद ही मूल निकाय है। स्थविरवाद में मूल बुद्ध वचन मिलते हैं। पिटक साहित्य जो अट्ठकथाओं के साथ संग्रहीत हैं वे स्थविरवाद से सम्बन्धित हैं। स्थविरवादी बुद्ध को मानवजनित कमजोरियों से युक्त मानव मानते हैं। इन्हें ही विभज्यवादी कहते हैं। इसी क्रम में उन्होंने स्थविरवाद से सर्वास्तिवाद की उत्पत्ति का उल्लेख किया जिसका संस्थापक राहुलभद्र को माना जाता है। सर्वास्तिवाद को ही वैभासिक कहा गया है। 6. गौतम बुद्ध पूर्व बुद्ध परम्परा : इस विषय पर संस्थान के पूर्व निदेशक एवं राष्ट्रीय प्रोफेसर महेश्वरी प्रसाद द्वारा व्याख्यान दिया गया। उन्होंने बताया कि त्रिपिटक आदि बौद्ध साहित्यों में गौतम बुद्ध पूर्व बुद्ध परम्परा प्राप्त होती है। अश्वघोष की अट्ठकथाओं में गौतम बुद्ध पूर्व 24 बुद्धों एवं उनके जीवनी की