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'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 55 प्रो0 राय ने बताया कि ब्राह्मण परम्परा में धर्म प्रचारक का राग-द्वेष से मुक्त होना अनिवार्य है और श्रमण परम्परा में जिन या अर्हत् भी राग-द्वेष से मुक्त होते हैं। अवतारवाद दोनों परम्पराओं में है। जहाँ जैन और बौद्ध अवतार मनुष्य हैं, वहीं ब्राह्मण धर्म में मत्स्य, शूकर, नरसिंह, कच्छप इत्यादि अवतार भी हैं। अतः श्रमण परम्परा को समझे बिना सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को नहीं समझा जा सकता। 2. जैन सम्प्रदाय : यह व्याखान मानव संस्कृति शोध संस्थान के सचिव डॉ० झिनकू यादव का था। डॉ0 यादव ने अपने व्याख्यान में तीर्थंकरों की चौबीसी का वर्णन करते हुए कुलकर परम्परा के बारे में बताया जो कि श्वेताम्बर मत में सात तथा दिगम्बर मत में चौदह हैं। उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक साक्ष्य केवल पार्श्वनाथ एवं महावीर के प्राप्त होते हैं। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ चातुर्याम सम्प्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं। चातुर्याम सम्प्रदाय सत्य, अहिंसा, अस्तेय एवं अपरिग्रह - इन चार महाव्रतों को मानता है। जबकि 24वें तीर्थंकर महावीर ने ब्रह्मचर्य को पंचम् याम के रूप में स्वीकार कर पंचमहाव्रत का प्रवर्तन किया। डॉ० यादव ने बताया कि कुछ विद्वान् महावीर के समय में ही सम्प्रदाय भेद मानते हैं। कुछ लोग स्वयं को पार्श्वनाथ की परम्परा का मानते थे और कुछ लोग महावीर की परम्परा को। परन्तु वीर निर्माण से 609 तक जैन धर्म में किसी प्रकार के भेद का ऐतिहासिक उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। कल्पसूत्र में महावीर के पश्चात् गणधर गौतम, आर्य सुधर्मा, आर्य जम्बू, आर्य भद्रबाहु, आर्य स्थूलभद्र, आर्य रक्षित इत्यादि 19 आचार्यों की परम्परा प्राप्त होती है। आर्य भद्रबाहु चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे। दुर्भिक्ष के कारण अपने 12000 शिष्यों के साथ समण बेलगोल चले गये। दुर्भिक्ष काल समाप्त होने पर जब वापस आये तो उन्हें यहाँ के जैन आचार में शिथिलता प्रतीत हुई और इस प्रकार मतभेद के कारण श्वेताम्बर व दिगम्बर दो सम्प्रदायों का उदय हुआ। डॉ यादव ने अपने व्याख्यान