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________________ संस्कृतकाव्यशास्त्र एवं प्राकृतकाव्यसाहित्य... : 39 बोलम्मि बट्टदि पवट्टदि कव्वबन्धे झाणे ण टुट्टदिचिरं तरुणी-तरट्टी।। इस गाथा में अनुप्रासालंकार होने पर भी वह रस का उत्कर्षाधयक नहीं है। विप्रलम्भश्रृङ्गार में टवर्ग का प्रयोग रस का अपकर्षक है। दशमोल्लास में वाक्यगाआर्थी उपमानलुप्ता के उदाहरण हेतु गाहासत्तसई से उदाहृत प्राकृत गाथा, यथा सअलकरण परवीसामसि.....सरिसं अंसंसमेत्तेण।।30 वहीं टुण्टुण्णन्तो मरिहसि......भमन्तो ण .पाविहिसि।।" मालतीकुसुमसरिच्छ, यह समस्तपद होने से समासगा उपमालंकार है। दशम उल्लास में ही एकदेशविवर्तिरूपक के उदाहरण हेतु 'गाहासत्तसई' से उद्धृत गाथा, यथा जस्य रणन्तेउए.....होइ रिउसेणा।। समासोक्ति अलंकार के उदाहरणार्थ 'गाहासत्तसई से उद्धृत गाथा, यथा लहिउफण तुज्झ बाहुप्पफंसं जीए स को बि उल्लासो। जअलच्छी तुह विरहे ण हूज्जला दुबला णं सा।। 33 यहाँ जयलक्ष्मी शब्द केवल कान्ता का ही वाचक नहीं है। अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरणार्थ - अण्णं लडहत्तण अण्णा विअ......च्चिअ ण होई।। यहाँ अण्ण शब्द से अतिशयोक्ति की व्यंजना की गई है। दीपकालंकार के प्रसंग में किवणाणं धणं णाआणं फणमणी केसराई सीहाणं। कुलवालिआणं त्थणआ कुत्तो छिप्पन्ति अमुआणं ।। यहाँ 'छिप्पन्ति' पद से क्रियादीपकालंकार व्यक्त होता है। वहीं आक्षेपालंकार के प्रसंग में, यथा
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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