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________________ 40 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 ए एहि किपि कीएवि.......मरउ ण भणिसं ।। वही सहोक्ति अलंकार के उदाहरणार्थ 'कर्पूरमंजरी' सट्टक से उदाहृत गाथा, यथा सह दिअहणिसाहिं दीहरा सासदण्डा सह मणिवलयेहिं वाप्पधरा गलन्ति। ...... दुव्वला जीविदासा।।" पर्यायालंकार के उदाहरणार्थ- 'विषमबाणलीला' से उद्धृत गाथा तं ताण सिरिसहोअर........कुसुमबाणेन।।38 प्राकृतभाषा में द्वि वचन का नियम नहीं होता, इसलिए एक ही मोहिनी के लिए 'पिआणं' (प्रियाणां) यह बहुवचन प्रयुक्त किया गया है। तत्रैव अन्योन्य अलंकार के उदाहरणार्थ 'गाहासत्तसई से उद्धृत गाथा, यथा हंसाणं सरेहिं सिरी सारिज्जइ अह सराण हंसेहिं। अण्णोण्णं विअ एए अप्पाणं णवर गुरूअन्ति।।" यहाँ एक-दूसरे की श्रीवृद्धि के द्वारा दोनों एक दूसरे के कारण (जनक) हैं। 'उत्तरालंकार' के उदाहरणार्थ 'गाहासत्तसई' से उदाहृत गाथा, यथा का विसमा देवगई किं लद्धं जं जणो गुणग्गाही। किं सौखं सुकलत्तं किं दुक्खं जं खलो लोओ।।" वही असंगति अलंकार के उदाहरणार्थ 'गाहासत्तसई' से उद्धृत गाथा जस्सेअ वणो तस्सेअ वेअणा भणइ तं जणो अलिअं। दन्तक्खअं कवोलं वहूए वेअणा सवत्तीणं।। स्मरणालंकार के उदाहरणार्थ प्राकृत गाथा, यथा करजुअगहिअजसोआत्थण.....रोमांचं ।।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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