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________________ 38 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 जं परिहरिउं तीरइ मणअं पि ण सुन्दरत्तणगुणेण। अह णवरं जस्स दोसो पडिपक्खेहिं पि पडिवण्णो।। सप्तम उल्लास में ही अधम प्रकृति के पात्रों की उक्तियों में ग्राम्यत्वदोष गुण हो जाता है इस तथ्य हेतु 'कर्पूरमंजरी' नामक नाटिका से उदाहृत प्राकृत गाथा, यथाफुल्लुक्करं कलमकूरणिहं वहति जे सिन्धुवारविड्वा मह वल्लहा दे। जे गालिदस्स महिसी दहिणो सरिच्छा दे किं च मुद्धविअइल्लपसूणपुंजा।। यहाँ कलमभक्त महिषीदधिशब्दा ग्राम्य होने पर भी विदूषक की उक्ति होने से दोष नहीं है। पुनरुक्तत्व (कथितपदत्व) कहीं गुण हो जाता है, इस प्रसंग में 'विषमबाणलीला' से उदाहृत गाथा, यथा - ताला जाअंति गुणा जाला दे सहिअएहि घेप्पन्ति। रइकिरणाणुग्गहिआई होन्ति कमलाइं कमलाइं।। यहाँ कमलाइं कमलाइं में दूसरा कमल पद सौरभसौन्दर्यादिविशिष्ट कमल का वाचक होने से अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य है। इसी प्रकार गर्भितत्त्व दोष भी कहीं गुण हो जाता है इस प्रसंग हेतु 'विषमबाणलीला' प्राकृतकाव्य से उदाहृत गाथा, यथा हुमि अवहित्थ........पसुमरामि।।" रसदोष के अन्तर्गत प्रतिकूल अनुभाव ग्रहण के प्रसंग हेतु ‘गाहासत्तसई से उदाहृत गाथा, यथा णिहुअरमणम्मि लोअणपहम्मि........एव्व महइ वहू।।" यहाँ सकलपरिहारवनगमने शान्तानुभावौ शृङ्गार रस के विरोधी हैं। अष्टमोल्लास में अलङ्कार की काव्य में स्थिति को निरूपित करते हुए 'कर्पूरमंजरी' सट्टक से उदाहृत गाथा, यथा चित्ते विहट्टदि ण टुट्टदि सा गुणेसु सज्जासु लोटट्दि विसट्टदिदिन्मुहे।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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