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________________ 38 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2/अप्रैल-जून 2014 इस प्रकार हम कह सकते हैं कि काव्यगत सौन्दर्य की झलक भी इसमें सर्वत्र परिलक्षित होती है। शब्दचयन एवं भाव की दृष्टि से पद्य अत्यन्त उच्च कोटि के हैं। शब्द-सौष्ठव तथा पदावली का समधुमय विन्यास देखते ही बनता है। विपुल अर्थ को कम से कम शब्दों में प्रकाशित करने की क्षमता विद्यमान है। हृदय के परिवर्तनशील भावों का अंकन कमनीय शब्द-कलेवर में किया गया है। यहाँ न तो कल्पना की उड़ान है और न प्रतीकों की योजनायें, पर भावों की प्रेषणीयता इतनी प्रखर है कि प्रत्येक पाठक भाव गंगा में निमग्न हो जाता है। मानव मात्र को क्रमश: मोक्ष पथ में जाने का पाथेय स्वरूप है। आत्मानुभूति से परिपूर्ण मुक्तक काव्य है। भक्ति रत्नावली अनोखी प्रतिभा का सफल उदाहरण है। सन्दर्भ : अनुयोगद्वार सूत्र, श्लोक १२७, सम्पा. मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान) विण्टरनित्स, एम., द जैन्स इन द हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, अहमदाबाद, १९४६, पृ० ४ विनायका, डॉ० संगीता, गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की संस्कृत रचनाओं का साहित्यिक एवं दार्शनिक अनुशीलन- इन्दौर, २०१०, पृ० २५३ जैन, डॉ० अनुपम, पराविद्याओं के विशेषज्ञ, खण्ड विद्या धुरन्धर बालाचार्य श्री योगीन्द्रसागर जी महाराज का साहित्यिक अवदान- खण्ड विद्या धुरन्धर, व्याख्यान वाचस्पति, योगविद्या मार्तण्ड, बालाचार्य श्री योगीन्द्रसागरजी महाराज की ४८वीं वर्षगाठ के अवसर पर जनहितार्थ प्रकाशित, इन्दौर, १७ फरवरी, २००९, पृ० १-५ भक्ति रत्नावली- बालाचार्य योगीन्द्रसागर, नेशनल नॉन वॉयलेंस यूनिटी फाउण्डेशन ट्रस्ट, उज्जैन, २००६ वही वही, श्लोक ३७ वही, श्लोक ३८
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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