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जैन साधना में श्रावक धर्म : 21 बैठना, लेन-देन का व्यवहार करना अपरिगृहीतेत्वरिकागमन अतिचार है। अनंगक्रीड़ा- काम सेवन के अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से काम-सेवन की क्रीड़ा करना या अन्य क्रियाओं द्वारा काम भावना की शान्ति करना अनंगक्रीड़ा अतिचार है। कामतीव्राभिनिवेश- स्वस्त्री में भी कामसेवा की अधिकता रखना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का बिना विचार किये काम
सेवन करना कामतीव्राभिनिवेश अतिचार है। ब्रह्मचर्याणुव्रत की पाँच भावनायें तथा उनका स्वरूपआचार्य उमास्वामी का कथन है कि स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहरांगनिरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, कामोद्दीपनरसत्याग एवं स्वशरीर-संस्कार त्याग-ये बह्मचर्याणुव्रत की पाँच भावनायें हैं'वीरागकथाश्रवणतन्मनोहरांगनिरीक्षण पूर्वरतानुस्मरण
वृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्काररत्यागाः पञ्च।१६ स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग- अन्य जनों की स्त्रियों में आसक्ति उत्पन्न करने वाली कथा, वार्ता, गीत आदि सुनने, पढ़ने और
कहने का त्याग करना स्त्रीरागकथा श्रवण त्याग भावना है। २. स्त्रीमनोहरांगनिरीक्षणत्याग- अन्यजनों की स्त्रियों के मनोहर
अंगों को राग सहित न देखना स्त्रीमनोहरांगत्याग भावना है। कामोद्दीपनरसत्याग- काम भावना उत्पन्न करने वाले पौष्टिक भोजन का त्याग कामोद्दीपनरसत्याग भावना है। स्वशरीरसंस्कारत्याग- कामीजनों के समान अपने शरीर का श्रृंगार न करना, साधारण वस्त्रादि धारण करना स्वशरीर संस्कार त्याग भावना है। उपर्युक्त भावनाओं का स्मरण रखने से ब्रह्मचर्याणुव्रत और अधिक पुष्ट होता है।