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________________ 18 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2/अप्रैल-जून 2014 परद्रव्य को लेने की कामना नहीं होती है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में तृतीय अणुव्रत अस्तेय का पालन करने वाले के बारे में बताया गया है कि जो बहुमूल्य वस्तु को अल्प मूल्य में नहीं खरीदता, दूसरे की भूली हुयी वस्तु को नहीं उठाता, अल्पलाभ में ही सन्तुष्ट रहता है तथा कपट, लोभ, क्रोध तथा मान से परद्रव्य का हरण नहीं करता वह निर्मलमति, दृढ़निश्चयी तृतीय अणुव्रत अस्तेय का पालन करने वाला है जो बहुमुल्लं वत्युं अप्प य मुल्लेण णव गिण्हेदि। वीसरियं पिवि गिण्हदि लाहे थोवे पि तुसेदि।। जो दव्वं ण हरदि माया-लोहेण कोह-माणेण। दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्बई सो हवे तिदिओ।। आचार्य समन्तभद्र के अनुसार जो दूसरे के रखे हुए, गिरे हुए, भूले हुए और धरोहर रखे हुए द्रव्य का न तो हरण करे और न ही दूसरे को दे, उस स्थूल चोरी से विरत होना ही अचौर्य अणुव्रत है निहितं वा पतितं वा सुविस्मृतं वा परस्वमविसष्टं। न हरति यन्न च दत्ते, तदकृशचौर्य्यादुपारणम्।।११ चोरी के सर्वथा त्याग से अचौर्य महाव्रत और एक देश (स्थूल) त्याग से अचौर्य अणुव्रत होता है। अचौर्याणुव्रतधारी श्रावक स्थूल चोरी का त्याग करता है। अचौर्याणुव्रत के पाँच अतिचार तथा उनका स्वरूप - स्तेनप्रयोग, तदाहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिक-मानोन्मान तथा प्रतिरूपक व्यवहार- ये पाँच अचौर्याणुव्रत के अतिचार हैं।१२ १. स्तनप्रयोग- चोरी करना या अन्य को चोरी की विधि बताना स्तेन प्रयोग अतिचार है। तदाहृतादान- चोरी किया हुआ पदार्थ ग्रहण करना, कम मूल्य में खरीदना या अन्य को दिलवाना तदाहृतादान अतिचार है।
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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