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________________ जैन साधना में श्रावक धर्म : 13 श्रावक के शान्तिपूर्ण न्यायानुकूल जीवन में जो व्यक्ति बाधा पहुँचाता है, उस पर आक्रमण करता है तथा उसके साधनों को नुकसान पहुंचाता है, तो श्रावक अपना यह कर्त्तव्य समझता है कि वह उसका प्रतिकार करे, इस प्रतिकार के प्रयत्न में हिंसा भी हो सकती है। इस प्रकार आत्मरक्षा, देशरक्षा तथा समाजरक्षा के लिए हिंसा करता हुआ भी श्रावक व्रती कहलाता है। ४) संकल्पी हिंसा- किसी त्रस जीव को संकल्प करके मारना, दूसरो से मरवाना या जानबूझकर मारने का विचार करना ‘संकल्पी हिंसा' है। अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार - अहिंसाणुव्रत का सावधानीपूर्वक पालन करते हुए भी कभी-कभी अज्ञानतावश दोष लगने की संभावना रहती है। इस प्रकार के दोषों को अतिचार बताया जाता है। ज्यादातर लोग इन अतिचारों में कुछ भी दोष नहीं समझते हैं और साधारण रीति से लौकिक पद्धति समझकर अतिचार रूप कार्य करते हैं। ध्यातव्य है कि ये कार्य अहिंसाणुव्रत को दूषित करते हैं और बार-बार इन कार्यों को करने से अहिंसाणुव्रत भंग हो जाता है। अत: अहिंसाणुव्रत का पालन करने वाले श्रावक को निम्नलिखित समस्त अतिचारों से दूर रहना चाहिये - बंधन- इच्छित स्थान पर जाते हुए किसी को रोकना या रोककर बाँधना, उन्हें पिंजड़े में डालना। वध- पशुओं को लाठी, चाबुक आदि से विशेष ताड़ना देना वध अतिचार है। छविच्छेद- पशुओं के नाक, कान आदि का छेदन करना, अग्नि तथा गर्म लोहे से दागना छेद अतिचार है। अति भारारोपण- पशुओं के शरीर पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादना अथवा शक्ति से अधिक उनसे कार्य लेना अति भारारोपण अतिचार है। अन्नपान निरोध- समयानुसार पशुओं को खाना-पीना न देना, उनको भूखा-प्यासा मारना अन्नपान निरोध अतिचार है।
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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