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________________ 8 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2/अप्रैल-जून 2014 भाषा का प्रयोग करता है। पुरोहित पण्डिताऊ भाषा का प्रयोग करता है, कण्व ऋषि जनोचित भाषा में ही बोलते हैं तथा स्त्रियाँ स्त्रियों के अनुकूल ही भाषा प्रयोग करती हैं। कालिदास के रूपकों में विभिन्न पात्रों द्वारा प्रयुक्त भाषाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने पर यह निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि उत्कृष्ट साहित्यिक शौरसेनी, महाराष्ट्री एवं सामान्य अथवा लोकभाषा के रूप में अपभ्रंश भाषा का प्रयोग करने में वे सिद्ध हस्त थे। कालिदास के रूपकों में प्राकृत के उपर्युक्त रूपों को छोड़कर और कोई रूप नहीं प्राप्त होता है। उसमें पालि का अभाव है जिससे यह प्रतीत होता है कि पालि युग में कालिदास के नाटकों की रचना नहीं हुई थी बल्कि उस समय हुई जिस समय कि प्राकृत लोकभाषा एवं साहित्यिक भाषा दोनों रूपों में प्रतिष्ठित थी। यही कारण है संस्कृत नाटकों में अधिक स्वाभाविकता लाने के लिए ही संस्कृत के साथ-साथ लोकभाषा के रूप में सभी पात्रों अथवा मध्यम श्रेणी के पात्रों या निम्न श्रेणी के पात्रों से जीवित भाषा प्राकृत में संवाद कराया गया है। यही परम्परा आधुनिक नाटकों में दिखाई पड़ती है। आज साहित्यिक मानक हिन्दी भाषा में लिखे हुए किसी नाटक में उच्च-स्तर के पात्रों से संस्कृत-निष्ठ हिन्दी तथा मध्यम श्रेणी के पात्रों से तद्भव प्रधान मानक हिन्दी और निम्न श्रेणी के ग्रामीण पात्रों से उच्च साहित्यिक खड़ी बोली न बुलवाकर नाटककार जनभाषा के रूप में अवधी, भोजपुरी एवं अन्य क्षेत्रीय बोलियों का प्रयोग करवाकर अधिक स्वाभाविकता अथवा सजीवता लाने का प्रयास किया जा रहा है। सन्दर्भ : पाठयं तु संस्कृतं नृणामनीचानां कृतात्मनाम् । - ना., भा., अ., -१७ कारणव्यपदेशेन प्राकृतं सम्प्रयोज्यत् । ऐश्वर्येण प्रमत्तस्य दारिद्र्येण प्लुतस्य च, उत्तमस्यापि पठत: प्राकृतिं सम्प्रयोजयेत् ॥ - वही, अ., १७/३२-३४ हंद मैं पुच्छिमि आअक्खहि गअवरु लालअपहारे णासिअतरुवरु। दूरविणिज्णअससहरकन्ती दिट्ठ पिअ मैं संमुह जन्ती ।। - विकमो., ४/४५
SR No.525088
Book TitleSramana 2014 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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