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________________ 2 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2014 इंगालकम्मे (अंगार कर्म), वणकम्मे (वनकर्म), भाडीकम्मे (भाटकर्म), साडीकम्मे (शाटककर्म), फोडकम्मे (स्फोटकर्म), दंतवाणिज्जे (दंतवाणिज्य), लाखवाणिज्जे (लाख वाणिज्य), केसवाणिज्जे (केश वाणिज्य), रसवाणिज्जे ( रस वाणिज्य), विसवाणिज्जे (विष वाणिज्य), जंतपीलणकम्मे (यंत्रपीड़न कर्म), निलंछणकम्मे (नपुंसककर्म), दावाग्गिदावणया (दावाग्निदावण) और असईजनपोसणा (दुराचारी लोगों का संरक्षण)। इन व्यवसायों में किसी न किसी प्रकार की हिंसा होती थी अतः जैनियों के लिए ये व्यवसाय वर्जित थे, परन्तु सामान्य जन में जीविका के साधन के लिए इनका प्रचलन था। शिल्पी उन्हीं वस्तुओं का निर्माण करते थे जिनसे उनको लाभ होता था। प्रश्नव्याकरण से ज्ञात होता है कि राजा और नगरवासी शिल्पियों द्वारा निर्मित सुन्दर वस्तुओं का उपयोग करते थे। इस काल में शिल्पकारों को शिक्षा भी दी जाती थी, शिल्प एवं उद्योग में पारंगत होने के लिए व्यक्ति कलाचार्य के समीप जाते थे।' शिल्पशालाएँ विस्तृत भूमि पर बनायी जाती थीं, शिल्प शालाओं में कुम्भकार शाला, लौहकार शाला, पण्यशाला आदि नाम प्राप्त होते हैं। इन्हीं शालाओं में तीर्थंकर और यात्री ठहरते भी थे। शिल्पी अपने व्यवसाय के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति सचेष्ट रहते थे। इसी कारण वे निगम, संघ, पूग, श्रेणी, निकाय आदि संगठनों में संगठित थे । ९° ये संगठन शिल्पियों के सुख तथा दुःख में सहयोग प्रदान करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि जब युवराज मल्लीकुमार ने क्रोधित होकर एक चित्रकार को मृत्युदण्ड दिया तो श्रेणी उसे समुचित न्याय दिलाने के लिए राजसभा में गयी। फलतः राजा ने मृत्युदण्ड के स्थान पर चित्रकार का अंगूठा काटकर (संडासक) उसे राज्य से निर्वासित कर दिया । १९ उद्योगों को देश की वनसम्पदा, खनिज सम्पदा, कृषि और पशुपालन समृद्धि से कच्चा माल नियमित रूप से उपलब्ध होता रहता था। वस्त्र उद्योग, काष्ठ उद्योग, चर्म उद्योग तथा वास्तु[-उद्योग के लिए कच्चे माल की आपूर्ति वन से हो जाती थी । कृषि से वस्त्र, खांड, तेल, मद्य आदि उद्योग चलते थे। खनिज सम्पदा से धातु उद्योग में उन्नति हुई थी। यातायात की सुविधा के कारण कच्चे माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने तथा उद्योग से उत्पादित वस्तुओं के वितरण में सुविधा थी ।
SR No.525087
Book TitleSramana 2014 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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