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66 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 खण्ड-३ प्र० सं० २०११, पृ० ३४, ९८ (आई०एस०बी०एन० ८१८८६७७-०८-६) ४. प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (दो भाग) लेखिका शकुन्तला जैन, सम्पा० डा० कमलचन्द सोगाणी, भाग-१, प्र० सं० २०१२, पृ०-१२,१८३, (हेमचन्द्र व्याकरण पर आधारित महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी और पैशाची प्राकृत के संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों की विभक्तियों का प्ररूपण, तथा पाँच परिशिष्टों के रूप में संज्ञा, सर्वनाम शब्दों के रूप, विवेचन में प्रयुक्त हेमचन्द्र के सूत्रों के सन्दर्भ तथा पुस्तक में उपलब्ध संज्ञा-क्रमशः पुंलिंग, नपुंसकलिंग एवं स्त्रीलिंग तथा विशेषण शब्दों की अनुक्रमणिका भाग-२ प्र० सं० २०१३, (आई०एस०बी०एन०-७ ९७८-८१९२६४६८-०-० पृ०-१०, १३८) (हेमचन्द्र व्याकरण पर आधारित क्रियाओं के कालबोधक प्रत्ययों, कृदन्त, भाववाच्य, कर्मवाच्य, स्वार्थिक, प्रेरणार्थक, विविध प्राकृत क्रियायें, अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया रूप एवं अनियमित कृदन्त, परिशिष्ट-१ क्रिया रूप व कालबोधक प्रत्यय, एवं विवेचन में प्रयुक्त हेमचन्द्र रचित सूत्रों के सन्दर्भ) ५. प्राकृत-व्याकरण, डा० कमलचन्द सोगाणी, प्र०सं० २००५, पृ० ८५ (सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय) ६. प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ (दो भाग), डा० कमलचन्द सोगाणी प्रथम सं० १९९९, पृ० १७३, ६१ (पाङ्ग, संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची, शब्दों से सम्बन्धित सूत्र, शौरसेनी प्राकृत से सम्बन्धित सूत्र, संज्ञा, सर्वनाम, एवं संख्यावाचक शब्द रूप, परिशिष्ट-१. मूल में प्रयुक्त सन्धि नियम, भाग-२ डा० कमलचन्द सोगाणी, प्र० सं० २००२, पृ० ७०, १७ (महाराष्ट्री, शौरसेनी प्राकृत एवं अपभ्रंश के क्रिया एवं कृदन्त सूत्र, प्राकृत एवं अपभ्रंश के क्रिया रूप, परिशिष्ट सं०- १. सूत्रों में प्रयुक्त सन्धिनियम, २. सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण)। प्राकृत अभ्यास सौरभ, डा० कमलचन्द सोगाणी, द्वि०सं० २००४, पृ० २२०