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6 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 जीवन में काम आने वाले घरेलू उपकरण कैंची, छुरी, सुई, नहरनी आदि लोहे से बनाए गये थे। स्वर्ण एवं रत्न उद्योग : प्राचीन काल में स्वर्ण उद्योग चरमोत्कर्ष पर था। सम्पन्न होने के कारण स्वर्णकारों को समाज में उच्च स्थान भी प्राप्त था।
औपपातिकसूत्र में वर्णित है कि स्वर्ण को आग में तपा कर अम्ल में प्रक्षालित किया जाता था। फिर पुनः अग्नि में डालने पर वह रक्तवर्ण का हो जाता था। राजा के लिए स्वर्णयान, भवन तथा आभूषण बनाए जाते थे। रानियाँ भी स्वर्ण के आभूषणों से अलंकृत रहती थीं। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार धारिणी देवी ने हार, करधनी, बाजूबन्द, कड़े, अंगूठियाँ आदि पहन रखा था।२ मेघकुमार ने दीक्षा लेने से पूर्व अठारह लड़ियों का हार, नौ लड़ियों का अर्द्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, प्रालम्ब (कंडी), पाद प्रालम्ब (पैरों तक लटकने वाला आभूषण) कड़े, टुटिक (भुजा का आभूषण), केयूर, अंगद, दसों अंगुलियों में दस मुद्रिकाएँ, कंदोरा कुण्डल आदि पहने हुए थे।४३ औपपातिकसूत्र से ज्ञात होता है कि अश्वों और हाथियों को सोने के आभूषणों से सुशोभित किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित है कि स्वर्णकारों ने मल्लीकुमारी की एक स्वर्णप्रतिमा भी बनायी थी।५ स्वर्णकारों के सदृश रत्नकार भी होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि राजगृह में एक नन्द नामक मणिकार रहता था। ६ राजा द्वारा रत्नजटित मकट का पहनना रत्न उद्योग के वैभव का प्रतीक था।४७ रत्नों का प्रयोग प्रसाधन मंजूषा तथा शृंगारदान बनाने में किया जाता था।४८ मेघकुमार के बाल को धारिणी देवी ने रत्न की 'डिबिया' में रखा था।४९ रत्न विभिन्न प्रकार के होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में सोलह प्रकार के रत्नों का उल्लेख हुआ हैकर्केतन, वैदूर्य, लौहिताक्षर, मसार, हेसगर्ग, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंक, अंजन, रजत, जातरूप, अंजनपुलक, स्फटिक तथा रिष्ट।५० स्थानांग से विदित होता है कि मणियों को खान से निकालकर शोधित किया जाता था।५१ आवश्यकचूर्णि से ज्ञात होता है कि 'राजगिरि' के एक मणिकार ने मणिरत्न जटित सुन्दर बैलों की जोड़ी बनाई थी।५२