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________________ 32 : श्रमण, वर्ष ६४, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ अतः उन पारिभाषिक शब्दों का तात्त्विक अर्थ उस परम्परा के आचार्य ही कर सकते हैं। उस कार प्रत्येक दर्शन या आम्नाय में आवश्यकतानुसार नये-नये शब्दार्थों का गठन या संयोजन किया जाता है। इस प्रकार के विशिष्ट कोश ग्रन्थों का उस परम्परा विशेष के अनुसार इंगित करना युक्तिसंगत है। जैन साहित्य एक प्राचीन और समृद्ध साहित्य है, इसमें समय-समय पर अनेकविध कोशों की रचना हुई है। हमारे शोध का उद्देश्य जैन परम्परा में उपलब्ध जैन कोशों का विभिन्न आयामों में अध्ययन तथा मल्यांकन करना है। इस शोध प्रबन्ध में लगभग १०० से अधिक जैन कोशों की जानकारी प्राप्त होती है। जिसमें संस्कृतभाषा के कोशों की संख्या ५३, प्राकृत भाषा के कोशों की संख्या १५, हिन्दी भाषा के कोशों की संख्या ३४ तथा अन्य भाषा के कोशों की संख्या १५ है। प्रस्तुतीकरण की सुविधा की दृष्टि से शोध प्रबन्ध को निम्न अध्यायों में वगीकृत किया गया है १. कोश का महत्त्व तथा जैन कोश का उद्भव एवं विकास २. संस्कृत भाषा के जैन कोश एवं कोशकार ३. प्राकृत भाषा के जैन कोश एवं कोशकार ४. हिन्दी भाषा के जैन कोश एवं कोशकार ५. अन्य भाषाओं के जैन कोश एवं कोशकार ६. उपसंहार प्रथम अध्याय : कोश का महत्त्व तथा जैन कोश का उद्भव एवं विकास - कोश को भारतीय वाड्मय में व्यावहारिक साहित्य का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। इसका अस्तित्व ढाई हजार वर्ष से भी पर्व मिलता है। लोकजीवन एवं संस्कृति की आधारशिला और भाषा का बल है शब्द। कोश इन शब्दों का संग्रह करते हैं। आचार्य अनंभट्ट ने आगम प्रामाण्य में आप्त पुरुष के वचन को प्रमाण कहा है। यहाँ पर वचन से
SR No.525086
Book TitleSramana 2013 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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