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________________ संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन ओम प्रकाश सिंह जैन परम्परा में उपलब्ध कोशों को भाषा की दृष्टि से संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और अन्य भाषा के कोशों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है। जैन परम्परा में विभिन्न शब्दों के पर्यायवाची प्रश्नव्याकरणसूत्र के साथ नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि में प्राप्त होते है। वर्तमान में उपलब्ध स्वतंत्र कोश की दृष्टि से नवम् शताब्दी में उपलब्ध धनञ्जय नाममाला सर्वप्रथम कोश कृति है। प्रस्तुत शोध सारांशिका में जैन परम्परा के कोशों का भाषागत आधार पर वर्गीकृत कर सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है। - सम्पादक साहित्य के क्षेत्र में सामान्यतः कोश शब्दकोश संग्रह एवं शब्दावली के रूप में प्रयुक्त होता है । वामन शिवराम आप्टे ने कोश के २४ अर्थ बताये हैं। विद्वानों द्वारा दी गयी कोश शब्द की परिभाषा के अनुसार कोश उसको कहा जाता है, जिसमें वर्णानुक्रम में शब्द, उसके पर्यायवाची तथा उसके अर्थ दिये जाते हैं। संदर्भ ग्रन्थों एवं विश्वकोशों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहां शब्दकोश किसी विषय की बोधगम्यता अथवा किसी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम उस शब्द अथवा पद का अभिप्राय, तात्पर्य या अवधारणा से हमें अवगत कराता है वहीं विश्ववकोश उस क्षेत्र के सभी विषयों पर पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है। इस प्रकार कोश में शब्दकोश, पारिभाषिक शब्दावली, भौगोलिक कोश ऐतिहासिक कोश, उद्धरण संग्रह, विषय विशेष को लेकर बनी सूचियाँ या अन्य उद्देश्य से बने शब्द संग्रह आदि सभी समाहित हैं। जैन परम्परा के मूर्धन्य विद्वान स्व० डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार प्रत्येक दर्शन की अपनी मान्यतायें होती हैं और उन्हीं मान्यताओं के अनुसार उन शब्दों को तत् - तत् परम्परा के अनुसार परिभाषित किया जाता है।
SR No.525086
Book TitleSramana 2013 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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