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संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन : 33 अभिप्रेत है उचित शब्द से कि सअर्थ का आदेश दिया जाता है इसकी स्पष्टतया प्रधानरूपेण कोश के द्वारा ही होती है। कोश के दो मुख्य प्रकार होते हैं
१. शब्दोश
२. विषयकोश शब्द कोश - पुस्तककोश, साहित्यकार कोश, साहित्यधारा कोश, कालकोश, बोली कोश, भाषा कोश। भाषा और बोली के कोश अनेक प्रकार के होते हैं। विषय कोश - विश्ववकोश, परिभाषाकोश, सूक्तिकोश, नामकोश, लोकोक्ति कोश, मुहावराकोश, प्रयोगकोश आदि। विषय कोश की संख्या तो और भी अधिक हो सकती है। वैदिक साहित्य से सम्बद्ध निघंटुओं को प्रारम्भिक कोश कहा जा सकता है। जैन साहित्य के विस्तार ने अपनी परम्परा में भी कोश- निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जैन परम्परा का सर्वाधिक प्राचीन साहित्य आगम अर्धमागधी प्राकृत में है। जैन परंपरा में शब्दकोश का प्रारम्भिक स्वरूप मूल आगम साहित्य, नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि में उपलब्ध होता है। भगवतीसूत्र में भी कोश के विषय में चर्चा की गई है। प्रश्नव्याकरण दसवाँ अंग है इसमें भी एकार्थक शब्दों का अनेक स्थलों पर निर्देश हुआ है। असत्यवाची के ३० पर्याय गिनाये गये हैं। आगमों के व्याख्या साहित्य में नियुक्तियों का प्रथम स्थान है।आचार्य भद्रबाहु ने अनेक ग्रन्थों पर नियुक्तियां लिखी हैं। नियुक्तियों में अनेक स्थानों पर एकार्थक शब्द की चर्चा है। उदाहरणार्थ -
आवश्यकनियुक्ति में सूत्र के एकार्थक शब्द-सूत्र, तंत्र, ग्रंथ, पाठ, शास्त्र। अनुयोग के एकार्थक शब्द-अनुयोग, नियोग,