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________________ 10 : श्रमण, वर्ष ६४, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ है (कुम्भारिया के शान्तिनाथ और माउण्ट आबू के विमल वसही मन्दिरों के दृश्यों में)। इस अध्ययन से यह भी सिद्ध हो जाता है कि मूलतः मेघरथ राजा शिवि अथवा शिवि जातक में उल्लिखित कथा का अभिप्रेत स्वर एक ही और वह है शरणागत की रक्षा एवं करुणा भाव। इसके लिए सर्वस्व समर्पण, यहाँ तक कि स्वयं के शरीर का समर्पण भी अभीष्ट है। वस्तुतः इस कथा को किसी धर्म, देवता या व्यक्ति विशेष से अलग श्रेष्ठ मानव धर्म का प्रतीक मानना चहिए। इसीलिए यह कथा समान रूप से सभी परम्पराओं में स्वीकृत हुई। भगवतगीता में भी कहा गया है, “महापुरुष जो आचरण करते हैं, साधारण मनुष्य उसी का अनुसरण करते हैं। वह पुरुष अपने विलक्षण कार्यों से जो आदर्श स्थापित करता है, सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण करता है।' ११२५ जैन प्रसंग की कथा भी भारतीय संस्कृति के मूलस्वर को ही व्यक्त करती है । सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥ कुषाणकालीन जैन आयागपटों पर भी "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' २६ का उल्लेख यही भाव प्रकट करता है । सन्दर्भ सूची : १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (त्रि० श०पु०च), हेमचन्द्रसूरि, अनु० गणेश ललवानी, भाग ४, जयपुर १९९२, पृ० ९२-१२५ २. एम० एन० पी० तिवारी, जैन प्रतिमा विज्ञान, वाराणसी, १९८१, पृ० १११ ३. वही ४. त्रि०श०पु०च०, पू० नि०, श्लोक २५३-२६७ ५. वही, श्लोक २७३ ६. वही, श्लोक २७४ 1
SR No.525086
Book TitleSramana 2013 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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