________________
तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित-साहित्य, कला एवं ..: 11 ७. त्रिश०पु०च०, श्लोक २८२-८३ ७. वही, श्लोक ३१४-१५ ९. कोवेल, जातक स्टोरी, खण्ड-चार, पृ० २५०-५६, स० २४९ १०.महाभारत (द्वितीय खण्ड), (अनु०) रामनारायण दत्त शास्त्री, गोरखपुर, सम्वत् २०५१, पृ० १३११ से १३१३ ११. एवमभ्यागतस्येह कपोतस्याभ्यार्थिनः।
अप्रदाने परं धर्म कथं श्येन न पश्यसि।। वही, श्लोक ४ । १२. शरणागतं च त्यजते तुल्यं तेषां हि पातकम् ।। वही, श्लोक ६ १३. वही, श्लोक १७ १४. वही, श्लोक २४ से २८ १५. यदा समं कपोतेन तव मांसं नृपोत्तम।
तदा देयं तु तन्मध्यां सा मे तुष्टिर्भविष्यति।। वही, श्लोक २४ १६. त्रिश०पु०च०, पू० नि०, श्लोक २७४ १७. अनुग्रहमिमं मन्ये श्येन यन्माभियाचसे
तस्मात् तेऽद्य प्रदास्यामि स्वमांसं तुलया घृतम् ।।
महाभारत, पू० नि०, श्लोक २५ १८. मुनि जयन्तविजय - होली आबू, अनु० यू० पी० शाह, भावनगर, १९५४,
पृ० ७०-७१, एम० एन० पी० तिवारी, पू० नि० । १९. त्रिश०पु०च०, पू० नि०, पंचम सर्ग, श्लोक २५ से ४१ २०. एम० एन० पी० तिवारी०, पू० नि०, पृ० १११-११२ . २१. वही, पृ० ११२ २२. त्रि०शपु०च०, पू०नि०, पंचम सर्ग, श्लोक- २७८-२७९ २३. मुनि जयन्तविजय, पू० नि०, हरिहर सिंह, जैन टेम्पल्स इन वेस्टर्न इण्डिया,
वाराणसी, १९८२ पृ० ६४ यू० पी० शाह- जैन रूप मण्डन, नई दिल्ली, १९८७, पृ० १५६, एम० एन०पी० तिवारी एवं एस० एस० सिन्हा- जैन
आर्ट एण्ड ऐस्थेटिक्स, दिल्ली, २०११, पृ० ६९-७० २४. त्रि० श० पु० च०, पू० नि०, पंचम सर्ग, श्लोक ३२०-३३० २५. यद्यदाचरित श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।। भगवतगीता, ३.२१ २६. एम०एन०पी० तिवारी एवं एस० एस० सिन्हा -जैन आर्ट ऐल
पोटेन्ट सोश्र ऑफ इण्डियन हिस्ट्री कल्चर एण्ड आर्ट (विथ स्पेशल रिफरेन्स टू दि कुषाण इमैजेज फ्रॉम मथुरा), स्वस्ति (प्रो० हम्पा नागरजैय्या अभिनन्दन ग्रन्थ), (सम्पा०) नलिनी बलबीर, बंगलोर, २०१०, पृ० ४३
****