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________________ तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित-साहित्य, कला एवं ... :9 कपोत रूपी सुरूप देव और दूसरी ओर शरीर के मांस के टुकड़ों से भार पूरा न होने पर मेघरथ को ही शरीर दिखाया गया है। आगे दीक्षा कल्याणक दृश्य में त्रि० श.पु०च० के वर्णन के अनुरूप शान्तिनाथ को सहस्राम्रवन की ओर शिविका (पालकी) में बैठकर प्रस्थान करते दिखाया गया है।२२ इसी क्रम में आगे केश-लुंचन के दृश्य में इन्द्र के द्वारा केशों को संचित करने का दृश्यांकन उल्लेखनीय है। साथ ही शान्तिनाथ की दो कायोत्सर्ग मर्तियों के मध्य समवसरण का अंकन हआ है२३ जो एक साथ शान्तिनाथ की तपस्या, कैवल्य-प्राप्ति और प्रथम देशना का संयुक्त शिल्पांकन है। इस प्रकार तीनों ही धर्मों (वैदिक-पौराणिक, बौद्ध एवं जैन) में वर्णितकथा के अध्ययन से ज्ञात होता है कि धर्म का मूल भाव 'शरणागत की रक्षा', 'करुणा' एवं 'अहिंसा' जैन परम्परा के विशेष संदर्भ में है। साथ ही राजा या शासक के लिए धर्म का पालन अनिवार्य बतलाया गया है। तीनों ही परम्पराओं में ऐसे कार्य के पश्चात् ही देवस्थान पाने का अधिकारी माना गया है। जैन परम्परा में शान्तिनाथ के जीवनवृत्त का कथात्मक साहित्यिक उल्लेख और उनके शिल्पांकन के अध्ययन से स्पष्ट है कि पूर्वभव में चक्रवर्ती होते हुए भी शरणगत की रक्षा, अहिंसा और त्याग के मार्ग पर चलते हुए सभी जीवों के साथ मैत्री-भाव और संयम के कारण ही उन्हें अगले भव में तीर्थकर (शान्तिनाथ) पद प्राप्त हुआ। तीर्थंकर पद प्राप्त करने के पश्चात् भी शान्तिनाथ ने समवसरण में अपनी प्रथम देशना में जगत् के कल्याण के निमित्त अहिंसा, अपरिग्रह और इन्द्रिय-निग्रह के सिद्धान्त पर ही बल दिया।२४ समवसरण में परस्पर वैरभाव वाले पशु-पक्षियों का साथ-साथ उपस्थित होना भी तीर्थंकर के उपदेशों-अहिंसा भाव की ही फलश्रुति है। शास्त्रों एवं दृश्यांकनों के अवगाहन के पश्चात् हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैंमेघरथ की कथा जहाँ एक ओर अनिवार्य धर्माचरण का प्रतीक है तो वहीं दूसरी ओर शान्तिनाथ कीजीवन-दृश्यों के पहचान में सहायक भी
SR No.525086
Book TitleSramana 2013 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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