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विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ ..... : 13 इस जनपद के तीर्थों में प्रमुख हैं- सिहौनिया, ग्वालियर, मनहरदेव, सोनागिरि, पनिहार-बरई, खनियाधाना, बजरंगगढ़, थूवौन, चन्देरी, खन्दारगिरि, गुरीलागिरि, बूढ़ी चन्देरी, आमनचार, भियादांत, बीठला, पपौरा, अहार, बन्धा, खजुराहो, द्रोणगिरि, रेशन्दीगिरि, पजनारी, बीना-बारहा, पटनागंज, अजयगढ़, कारीतलाई और पतियानदाई। इन तीर्थ क्षेत्रों में कोटि-कोटि निर्ग्रन्थ मुनियों की आत्मसाधना इन पर्वत शिखरों, गुहाओं एवं नदी तटपर बैठकर या कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान करते सफल हुई है। उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। कुछ मुनियों ने केवल-ज्ञान प्राप्ति पश्चात् गन्धकुटी में विराजमान होकर जगज्जीवों के कल्याण एवं हित साधन हेतु उपदेश दिया और आयु कर्म पूर्ण होने पर यहीं से मुक्त हो गये। कुछ मुनियों पर घोर उपसर्ग हुए और वे अन्तकृत् केवली होकर सिद्ध परमात्मा बन गये। इस क्षेत्र में कुछ ऐसे स्थान हैं जहां मुनियों को निर्वाण प्राप्त हुआ और इसलिये वे क्षेत्र सिद्ध-क्षेत्र के नाम से जाने गये। इनमें पावागिरि, सिद्धवरकूट, चूलगिरि, रेशंदीगिरि, सोनागिरि एवं द्रोणगिरि प्रमुख हैं। पावागिरि में सुवर्णभद्र आदि चार मुनियों को निर्वाण प्राप्त हुआ था। मालवराज बल्लाल ने इस स्थान पर ९९ मन्दिर बनवाये थे। वर्तमान में ११ मन्दिर उन्नत अवस्था में हैं अन्य मन्दिरों के भग्नावशेष मात्र बचे हैं। सिद्धवरकूट में रावण के दो पुत्र तथा साढ़े पांचकरोड़ मुनि मुक्त हुए जबकि चूलगिरि में इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण को मुक्ति प्राप्त होने के उल्लेख हैं। यहां से ऋषभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में ८४ फुट ऊंची पाषाण प्रतिमा प्राप्त हुई है। रेशंदीगिरि का नाम नैनागिरि भी है। यहां से भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण में वरदत्त आदि पांच मुनि मोक्ष को प्राप्त हुए। द्रोणगिरि- फलहोड़ी ग्राम के पश्चिम में द्रोणगिरि पर्वत शिखर से गुरुदत्त आदि मुनियों की मुक्ति हुई है। वर्तमान में यह क्षेत्र सेंधपा ग्राम (जिला छतरपुर) के निकट माना जाता है। सोनागिरि से नंग कुमार, अनंग कुमार आदि साढ़े पांच करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं, ऐसा माना जाता है। अत: यह सिद्ध क्षेत्र है। यह क्षेत्र झांसी-दतिया के निकट है। कुछ लोग अहार को निर्वाण-क्षेत्र मानते हैं। उनकी मान्यता है कि मदनकुमार और विष्कंवल केवली यहां से मुक्त हुए थे। इन सिद्ध क्षेत्रों की अवस्थिति को लेकर विवाद भी है। कुछ लोग यह मानते हैं कि ये अतिशय एवं सिद्ध क्षेत्र अपने स्थान पर नहीं हैं तो कुछ लोग यह मानते हैं कि ये अपने स्थान पर ही हैं। एक वर्ग ऐसा भी है जो इन क्षेत्रों की प्रमाणों के आधार पर सही अवस्थिति की गवेषणा का पक्षधर है।