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________________ प्राकृतकथा वाङ्मय में निहित वैश्विक संदेश : 29 है कि ये तो मेरे द्वारा पूर्वजन्म में संचित किये गये कर्मों के ही फल हैं। रिमोयणं व मण्णइ, जो उवसग्गं परीसहं तिव्वं । पावफलं मे एवं मया वि जं संचिदं पुव्वं ॥ " सदाचार उत्तराध्ययन सूत्र " में सदाचार के बारे में कहा गया है कि सदा शान्त रहे, वाचाल न हो, ज्ञानी पुरुषों के समीप रहकर अर्थयुक्त आत्मार्थ-साधक पदों को सीखे। निरर्थक बातो को छोड़ें। विवेकी पुरुष अनुशासन से कुपित न हों, शान्ति - क्षमाशीलता धारण करें तथा क्षुद्र जनों की संगति न करें, उनके साथ हास्य और कीड़ा का वर्जन करें। जो व्यवहार धर्म से अनुमोदित है ओर ज्ञानी पुरुषों ने जिसका सदा आचरण किया है, उस व्यवहार का आचरण करनेवाला पुरुष कभी भी गर्हा - निन्दा को प्राप्त नहीं होता । यथा धम्मज्जियं च ववहारं, बुद्धेहायरियं सया । तमायंरतो ववहारं, गरहं नाभिगच्छइ ॥ - उत्त०सू० 1/42 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आगमयुगीन कथाओं का लक्ष्य शुद्ध मनोरंजन की अपेक्षा मानव का नैतिक-आध्यात्मिक कल्याण ही रहा है। प्राकृत कथा साहित्य मानवता का पोषक रहा है। धर्म, साधना, जाति, वर्ण आदि भेदक तत्त्वों को दूर रखकर अहिंसा, संयम, तप, आदि आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर मानव की उच्चता या अधमता का मूल्यांकन किया गया है। आत्मानुभूति एवं समत्व सिद्धान्त के आधार पर दान, सेवा, परोपकार, विनय, सदाचार जैसे मानवीय मूल्यों का महत्त्व प्रतिपादिक किया गया है। उदाहरण स्वरूप दी गयी गाथाओं के अन्तर्गत गुम्फित मानवीय मूल्यों से पता चलता है कि व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के अभ्युत्थान के लिए ये सभी मूल्य आवश्यक हैं। सभी मूल्यों का परस्पर एकात्मक कल्याण मार्ग से आबद्ध रहें। उसमें सौहार्द्र, आत्मोत्थान, स्थायी शांति, सुख और समृद्धि के पवित्र साधनों का उपयोग होता रहे। इस प्रकार के विचार प्राचीन आगम साहित्य में बहुलता से प्राप्त होते हैं। आज के युग में जब हम धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से बहुत कुछ खोते जा रहे हैं, पुरानी विरासत को बचाये रखने के लिए प्राचीन प्राकृत वाङ्मय में वर्णित विभिन्न मूल्यों को अपनाकर व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण की कामना की जा सकती है।
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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