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________________ प्राकृतकथा वाङ्मय में निहित वैश्विक संदेश : 23 है। किन्तु शैली की दृष्टि से कथाओं के पाँच भेद उपलब्ध होते हैं। यथा सकलकथा, खण्डकथा, उल्लापकथा, परिहासकथा और संकीर्णकथा । प्राकृत कथा साहित्य का आदिस्रोत जैन आगम साहित्य ही है। तीर्थंकर महावीर के काल से प्रारम्भ हुई प्राकृत कथा साहित्य की धारा आज तक अनवरत प्रवाहित हो रही है। युगों युगों के इस अन्तराल में इसने सिर्फ अपना रूप परिवर्तित किया है। आगमकालीन कथाओं की उत्पत्ति कतिपय उपमानों, रूपकों और प्रतीकों से हुई है। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने आगम कालीन कथाओं की प्रवृत्तियों के विश्लेषण में बताया है कि " आरम्भ में जो मात्र उपमाएं थीं उनकों बाद में व्यापक रूप देने और धार्मिक मतावल्म्बियों के लाभार्थ उनसे उपदेश ग्रहण करने के निमित्त उन्हें कथात्मक रूप प्रदान किया गया है । " प्राचीन आगम ग्रंथों में आचारांग के कुछ ऐसे रूपक और प्रतीक मिलते हैं, जिनके आधार पर परवर्ती ग्रंथों में कथाओं का विकास हुआ। आचारांग सूत्र के छठें अध्ययन के प्रथम सूत्र में कहा गया है कि से बेमि से जहावि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहई भजंगा इव.........न लभंति मुक्खं । अर्थात् एक कछुए के उदाहरण द्वारा, जिसे शैवाल के बीच में रहने वाले एक छिद्र से ज्योत्स्ना का सौन्दर्य दिखलाई पड़ा था, जब वह पुनः अपने साथियों को लाकर उस मनोहर दृश्य को दिखाने लगा, तो वह छिद्र ही नहीं मिला। इस प्रकार त्यागमार्ग में सतत् सावधानी रखने का संकेत इस अंश में बताया गया है। प्राकृत साहित्य का इतिहास 14 ग्रंथ में प्राकृत आगमों में आगत कथाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दिया गया है कि सूत्रकृतांग के द्वितीय खण्ड के प्रथम अध्याय में पुण्डरीक का दृष्टान्त कथा साहित्य के विकास का अप्रतिम उदाहरण है। कथानक संकलन की दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथा सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ज्ञाताधर्मकथा में विभिन्न उदाहरणों तथा धर्मकथाओं के माध्यम से जैन धर्म के तत्त्व-दर्शन को समझाया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में 19 अध्ययन है, जिसमें न्याय, नीति आदि के माध्यम से सामान्य नियमों को कथाओं द्वारा समझाने का प्रयत्न किया गया है। इन कथाओं में करुणा का महत्त्व, आहार का उद्देश्य, संयमित जीवन की कठोर साधना, शुभ परिणाम, सम्यक् श्रद्धा का महत्त्व, अनासक्ति, महाव्रतों की उन्नति, वैराग्य, कपट का परिणाम, निदान आदि सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। ये सभी कथाएं मूल प्राकृत आगमों
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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