SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 3 / जुलाई - सितम्बर 2012 प्राकृत वाङ्मय में कथा - साहित्य का उदय ईसा की लगभग चौथी शताब्दी से प्रारम्भ होकर 16वीं - 17वीं शताब्दी तक चलता है। इसमें कथा, उपकथा, अन्तर्कथा, आख्यान, दृष्टांत, वृत्तांत और चरित आदि कथा के अनेक रूप दिखाई देते हैं। इनमें वाक्-कौशल, प्रश्नोत्तर, उत्तर- प्रत्युत्तर, प्रहेलिका, समस्यापूर्ति, सुभाषित, सूक्ति, कहावत, गीत, प्रगीत, चर्चरी, गाथा, छंद आदि का यथेष्ट उपयोग किया गया है। अर्धमागधी प्राकृत साहित्य' में विपुल कथा - साहित्य की संरचना की गई है, जिसमें आचार-मीमांसा, धर्म - निरूपण आदि की प्रधानता है। गूढ़ से गूढ़ विचारों एवं गहन अनुभूतियों को सरलतम रूप में जन-मानस तक पहुंचाने के लिए तीर्थकर, गणधर एवं अन्य आचार्यों ने कथाओं का आधार लिया है। प्राकृत साहित्य में कथा की अनेक विधाएँ उपलब्ध होती हैं : जैसे वार्त्ता, आख्यान, कथानक, आख्यायिका, दृष्टान्त, उपाख्यान आदि। जैनाचार्यों ने कथा के अनेक भेदों की चर्चा की है। जो अन्यत्र अनुपलब्ध है। हेमचन्द्राचार्य के काव्यानुशासन और उद्योतनसूरि की कुवलयमाला कथा" में प्राकृत कथा रूपों की विस्तृत चर्चा हुई है। जैन कथा - साहित्य के बीज अर्द्धमागधी में निबद्ध आगम साहित्य में उपलब्ध होते हैं जिनका विकास नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका ग्रन्थों में कालक्रम से सम्पन्न हुआ। दशवैकालिक सूत्र " में प्रस्तुत वर्गीकरण के अनुसार इन कथाओं के तीन भेद प्राप्त होते हैं (1) अकथा, (2) सत्कथा और ( 3 ) विकथा । जिन कथाओं से मिथ्यात्व - भावना के उद्दीपनपूर्ण वर्णनों के कारण मोहमयी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होती है ऐसी कथाओं को अकथा कहा गया है। जिन कथाओं में ज्ञान के साधनभूत तप, संयम, दान एवं शील जैसे सदगुणों की प्रशस्ति निबद्ध की जाती है उन्हें सत्कथा कहा जाता है। स्त्री कथा, धन कथा, भोजन कथा, नदी पर्वत से घिरे हुए स्थान की कथा, केवल पर्वत से घिरे हुए स्थान की कथा, राज कथा, चोर कथा, देश नागर कथा, खानी सम्बन्धी कथा, नटकथा, भाटकथा, मल्लकथा, कपटजीवी व्याध व ज्वारी की कथा, हिंसकों की कथा, ये सब लौकिक कथाएं विकथा हैं। मूल आगम साहित्य में कथाओं के मुख्यतः तीन रूप मिलते हैं यथा अर्थकथा, धर्मकथा और कामकथा | 12 आचार्य हरिभद्र ने मिश्रकथा को जोड़कर इनके चार प्रकारों की उद्भावना की
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy