________________
2 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 3 / जुलाई-सितम्बर 2012 अस्तिकाय पाँच हैं - 1. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. जीवास्तिकाय और 5. पुद्गलास्तिकाय। द्रव्य को 6 प्रकार का प्रतिपादित करते समय अद्धासमय (काल) को भी पंचास्तिकाय के साथ जोड़कर निरूपित किया जाता है।' अस्तिकाय एवं द्रव्य दो भिन्न शब्द हैं, अतः इनके अर्थ में भी कुछ भेद होना चाहिए। अस्तिकाय द्रव्य हैं, किन्तु द्रव्यमात्र अस्तिकाय नहीं है। 'अस्तिकाय' (अत्थिकाय) शब्द का विवेचन करते हुए आगम टीकाकार अभयदेव सूरि ने कहा है- अस्तीत्ययं त्रिकालवचनो निपातः, अभूवन् भवन्ति भविष्यन्ति चेति भावना। अतोऽस्ति च ते प्रदेशानां कायाश्च राशयः इति- अस्तिकायाः। 'अस्ति' शब्द त्रिकाल का वाचक निपात है, अर्थात् 'अस्ति' से भूतकाल, वर्तमान एवं भविष्यत् तीनों में रहने वाले पदार्थों का ग्रहण हो जाता है। 'काय' शब्द राशि या समूह का वाचक है। जो काय अर्थात् राशि तीनों कालों में रहे, वह अस्तिकाय है। अस्तिकाय की एक अन्य व्युत्पत्ति में अस्ति का अर्थ प्रदेश करते हुए प्रदेशों की राशि या प्रदेश समूह को अस्तिकाय कहा गया है - अस्तिशब्देन प्रदेशप्रदेशाः क्वचिदुच्यन्ते, ततश्च तेषां वा कायाः अस्तिकायाः। इस अस्तिकाय के द्वारा सम्पूर्ण जगत् की व्याख्या हो जाती है। 'अस्तिकाय' को व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के आधार पर अधिक स्पष्टरूपेण समझा जा सकता है। वहाँ पर तीर्थकर महावीर से उनके प्रमुख शिष्य गौतम गणधर ने जो संवाद किया, वह इस प्रकार है - प्रश्न- भंते! क्या धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है? उत्तर- गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता) प्रश्न- भंते! क्या धर्मास्तिकाय के दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दस, संख्यात और असंख्यात प्रदेशों को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है? उत्तर- गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रश्न- भंते! एक प्रदेश न्यून धर्मास्तिकाय को क्या धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है? उत्तर- गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रश्न- भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है?