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________________ अर्द्धमागधी आगम-साहित्य में अस्तिकाय : 3 उत्तर- गौतम! जिस प्रकार चक्र के खण्ड को चक्र नहीं कहते, किन्तु सम्पूर्ण को चक्र कहते हैं, इसी प्रकार गौतम! धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता है; यावत् एक प्रदेश न्यून तक को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता। प्रश्न- भंते! फिर धर्मास्तिकाय किसे कहा जा सकता है? उत्तर- गौतम! धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं, जब वे कृत्स्न, परिपूर्ण, निरवशेष एक के ग्रहण से सब ग्रहण हो जाएँ, तब गौतम! उसे धर्मास्तिकाय कहा जाता है। धर्मास्तिकाय की भाँति व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय का भी अखण्ड स्वरूप में अस्तिकायत्व स्वीकार किया गया है। यह अवश्य है कि जहाँ धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं, वहाँ आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश हैं। इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार धर्मास्तिकाय के अन्तर्गत निरवशेष असंख्यात प्रदेशों का ग्रहण होता है, उसी प्रकार अधर्मास्तिकाय आदि के भी अपने समस्त प्रदेशों का उस अस्तिकाय में ग्रहण होता है। एक प्रदेश भी न्यून होने पर उसे तत् तत् अस्तिकाय नहीं कहा जाता। अस्तिकाय का द्रव्य से भेद अस्तिकाय का द्रव्य से यही भेद है कि अस्तिकाय में जहाँ धर्मास्तिकाय आदि के अखण्ड निरवशेष स्वरूप का ग्रहण होता है, वहाँ धर्मद्रव्य आदि में उसके अंश का भी ग्रहण हो जाता है। परमार्थतः धर्मास्तिकाय अखण्ड द्रव्य है, उसके अंश नहीं होते हैं। इसे समझने के लिए पुद्गलास्तिकाय का उदाहरण अधिक उपयुक्त है। जब समस्त पुद्गल द्रव्यों का अखण्डरूप से ग्रहण किया जाएगा तब वह पुद्गलास्तिकाय कहलायेगा तथा टेबल, कुर्सी, पेन, पुस्तक, मकान आदि पुद्गल द्रव्य कहलायेंगे, पुद्गलास्तिकाय नहीं। टेबल आदि पुद्गल तो हैं, किन्तु पुद्गलास्तिकाय नहीं। क्योंकि इनमें समस्त पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता है। अतः टेबल, कुर्सी आदि को पुद्गल द्रव्य कहना उपयुक्त है। इसी प्रकार जीवास्तिकाय में समस्त जीवों का ग्रहण हो जाता है, उसमें कोई भी जीव छूटता नहीं है, जबकि अलग-अलग, एक-एक जीव भी जीवद्रव्य कहे जा सकते हैं। यह अस्तिकाय एवं द्रव्य का सूक्ष्म भेद आगमों में सन्निहित है। काल को द्रव्य तो स्वीकार किया गया है, किन्तु उसका कोई अखण्ड स्वरूप नहीं
SR No.525081
Book TitleSramana 2012 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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